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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*अहमदाबाद प्रसंग*
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*गुनहगार अपराधी तेरे, भाज कहां हम जांहिं ।*
*दादू देखा शोध सब, तुम बिन कहीं न समांहि ॥९॥*
(विनती अंग ३४)
दादूजी अहमदाबाद के कांकरिये तालाब पर ११ वर्ष की आयु में साथी बालकों के साथ खेल रहे थे तब वहां वृद्धरूप में भगवान प्रकट हुये । उनको देख कर सब बालक भयभीत होकर भाग गये किन्तु दादूजी से पू़छा - सब भाग गये तुम क्यों नहीं भागे ? तब उक्त साखी दादूजी ने बोली थी फिर पैसा भेंट किया था । दादूजी की अनुभववाणी का आरम्भ यहां से ही हो गया था । पैसा भेंट की कथा व प्रसाद देने की और *गैब मांहि गुरुदेव मिल्या* की प्रसंग कथा गुरु अंग में आ गई है ।
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