शनिवार, 25 सितंबर 2021

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*दादू सिरजनहारा सबन का, ऐसा है समरत्थ ।*
*सोई सेवक ह्वै रह्या, जहँ सकल पसारैं हत्थ ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥ ६ प्रार्थना भक्ति ॥*
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*॥ प्रार्थना से अभाव की पूर्ति ॥*
पूरा होत अभाव झट, विनय करत मन लाय ।
मूलर ले भोजन गया, जीमे सब सुख पाय ॥१५५॥
दृष्टांत कथा – मूलर साहिब के एक अनाथलय था, जिसमें बहुत से अनाथ लड़के थे । एक दिन रसोईयों ने आकर कहा – 'आज भोजन का कुछ भी सामान नहीं है । हम लोग क्या बनावें ।' मूलर – 'तुम अपना काम करो ।' रसोईयों ने भोजन बनाने के प्रथम के सब काम कर लिये ।
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उधर मूलर साहिब ने भगवान् से प्रार्थना की – 'भगवन् ! ये बच्चे आपके ही हैं' आपने इन्हें आज तक भोजन दिया है, आज भी आप ही देंगे, दूसरे की क्या शक्ति है । रसोईयों ने फिर आकर कहा – 'साहिब !समय बहुत कम रह गया है, कुछ प्रबन्ध कीजिये ।' मूलर – 'हमने अपना काम कर दिया है, अब शेष जिनका है वे करेंगे । तुम अपना काम करो ।' पंक्ति का समय होगया साहिब ने कहा – 'घन्टी लगादो ।'
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घन्टी लगाते ही द्वार पर से आवाज आई – 'माल के छकड़े खाली कराओ ।' एक मनुष्य ने मूलर के पास जाकर कहा – 'अमुक साहिब के आज एक पार्टी थी किन्तु कुछ विघ्न होजाने से वह नहीं हो सकी । उसके लिये बना हुआ भोजन आपके यहां के बच्चों के लिये भेजा है ।' समय पर पंक्ति लग गई और सब आनन्द से जीम लिये । इससे सूचित होता है कि अभाव की पूर्ती भी प्रार्थना से दूर होजाती है ।

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