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*सतगुरु शब्द विवेक बिन, संयम रह्या न जाइ ।*
*दादू ज्ञान विचार बिन, विषय हलाहल खाइ ॥*
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श्री रज्जबवाणी टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*ज्ञान बिना करणी का अंग १६४*
इस अंग में ज्ञान रहित कर्तव्य कर्म का विचार कर रहे हैं ~
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करणी करै विचार बिन, तबै बंधै ता माँहिं ।
रज्जब उलझ१ अज्ञान में, कबहूं सुलझै२ नाँहिं ॥१॥
बिना ज्ञान जब कर्म करता है तब ही उनमें करने वाला बंधता है और अज्ञानावस्था में बंधा हुआ ज्ञान बिना कभी भी नहीं खुलता२ ।
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भक्ति भेद१ बिन कछु नहीं, ज्यों स्वप्ने बरड़ाय२ ।
रज्जब रस नहिं पाइये, पड्या रैनि दिन गाय ॥२॥
भक्ति का रहस्य१ जाने बिना भक्ति कुछ नहीं होती । जैसे स्वप्न में पड़ा हुआ मनुष्य बोलता२ है, वैसे ही रात्रि दिन पद गाता रहता है किंतु भक्ति रस नहीं मिलता ।
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नाम हिं भजै विचार बिन, यथा अकलि१ बिन राज ।
रज्जब रहै न एक पल, तब ही होय अकाज२ ॥३॥
ज्ञान विचार के बिना नाम भजन, बिना बुद्धि१ के राज्य शासन के समान है । बिना बुद्धि से राज्य शासन नहीं हो सकता शीघ्र ही कार्य की हानि२ होती है, वैसे ही बिना विचार एक क्षण भी नाम पर मन नहीं ठहरता, उसी क्षण विषयों में भाग जाता है ।
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गज गुमान१ बहुते करैं, जोर२ न जाया३ जिय ।
रज्जब बुद्धि विचार बिन, बेड़ी खुलै न पाय४ ॥४॥
जैसे हाथी अपने बल का गर्व१ करता है किंतु बुद्धि बिना उसके बल२ से पैर४ की बेड़ी नहीं खुलती । वैसे ही बहुत से नर अपने तपादि का अभिमान करते हैं किंतु ज्ञान विचार बिना तपादि बल से उसके हृदय से नारी३ का राग नहीं जाता ।
(क्रमशः)
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