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*देखा देखी सब चले, पार न पहुँच्या जाइ ।*
*दादू आसन पहल के, फिर फिर बैठे आइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ मन का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*शुभ संस्कार तथा ईश्वर के लिए व्याकुलता*
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दक्षिणेश्वर मौजे से कुछ लड़के आये । उन्होंने श्रीरामकृष्ण को प्रणाम किया । वे लोग आसन ग्रहण करके श्रीरामकृष्ण से प्रश्न कर रहे हैं । दिन के चार बजे होंगे ।
एक लड़का - महाराज, ज्ञान किसे कहते हैं ?
श्रीरामकृष्ण - ईश्वर सत् हैं और सब असत्, इसके जानने का नाम ज्ञान है ।
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"जो सत् हैं उनका एक और नाम ब्रह्म है, एक दूसरा नाम है काल । इसीलिए लोग कहा करते हैं - अरे भाई, काल में कितने आये और कितने चले गये ।
"काली वे हैं जो काल के साथ रमण करती हैं । आद्याशक्ति वे ही हैं । काल और काली, ब्रह्म और शक्ति अभेद हैं ।
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"संसार अनित्य है, वे नित्य हैं । संसार इन्द्रजाल है, बाजीगर ही सत्य है, उसका खेल अनित्य है ।"
लड़का - संसार अगर माया है, इन्द्रजाल है, तो यह दूर क्यों नहीं होता ?
श्रीरामकृष्ण – संस्कार-दोषों के कारण यह माया नहीं जाती । कितने ही जन्मों तक इस माया के संसार रहने के कारण यह सच जान पड़ती है ।
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"संस्कार में कितनी शक्ति है, सुनो । एक राजा का लड़का पिछले जन्म में धोबी के घर पैदा हुआ था । राजा का लड़का होकर जब वह खेल रहा था, तब अपने साथियों से उसने कहा, ये सब खेल रहने दो, मैं पेट के बल लेटता हूँ, तुम लोग मेरी पीठ पर कपड़े पटको !
"यहाँ बहुत से लड़के आते हैं, परन्तु कोई कोई ईश्वर के लिए व्याकुल हैं । वे अवश्य ही संस्कार लेकर आये हैं ।
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"वे सब लड़के विवाह की बात पर रो देते हैं । स्वयं विवाह की बात तो सोचते नहीं । निरंजन बचपन से ही कहता है मैं विवाह न करूँगा ।
"बहुत दिन हो गये (बीस वर्ष से अधिक) यहाँ वराहनगर से दो लड़के आते थे, एक का नाम था गोविन्द पाल, दूसरे का गोपाल सेन । उनका मन बचपन से ही ईश्वर पर था । विवाह की बात होने पर डर से सिकुड़ जाते थे । गोपाल को भावसमाधि होती थी । विषयी-मनुष्यों को देखकर वह दब जाता था जैसे बिल्ली को देखकर चूहे । जब ठाकुरों(Tagore) के लड़के उस बगीचे में घूमने के लिए गये हुए थे, तब उसने अपने घर का दरवाजा बन्द कर लिया था, इसलिए कि कहीं उनसे बातचीत न करनी पड़े ।
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“पञ्चवटी के नीचे गोपाल को भावावेश हो गया था । उसी अवस्था में मेरे पैरों पर हाथ रखकर उसने कहा, 'अब मुझे जाने दीजिये । अब इस संसार में मुझ से रहा नहीं जाता - आपको अभी बहुत देर हैं - मुझे जाने दीजिये ।' मैंने भी भावावस्था में कहा – ‘तुम्हें फिर आना होगा ।’ उसने कहा - 'अच्छा, फिर आऊँगा ।
"कुछ दिन बाद गोविन्द आकर मिला । मैंने पूछा, गोपाल कहाँ है ? उसने कहा, गोपाल चला गया(उसका निधन हो गया) ।
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“दूसरे लड़के देखो, किस चिन्ता में घूम रहे हैं ! - किस तरह धन हो – गाड़ी हो - मकान हो - वस्त्राभूषण हो - फिर विवाह हो - इसी के लिए घूम रहे हैं । विवाह करना है, तो लड़की कैसी है, इसकी पहले खोज करते हैं और सुन्दर है या नहीं, इसकी जाँच करने के लिए स्वयं जाते हैं ।
"एक आदमी मेरी बड़ी निन्दा करता है । बस यही कहता है कि ये लड़कों को प्यार करते हैं । जिनके अच्छे संस्कार हैं, जो शुद्धात्मा हैं, ईश्वर के लिए व्याकुल होते हैं, रुपया, शरीर-सुख इन सब वस्तुओं की ओर जिनका मन नहीं है, मैं उन्हीं को प्यार करता हूँ ।
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"जिन्होंने विवाह कर लिया है, उनकी अगर ईश्वर पर भक्ति हो, तो वे संसार में लिप्त न हो जायेंगे । हीरानन्द ने विवाह किया है तो इससे क्या हुआ ? वह संसार में अधिक लिप्त न होगा ।"
हीरानन्द सिन्ध का रहनेवाला, बी. ए. पास एक ब्राह्मसमाजी है । मणिलाल, शिवपुर के ब्राह्मभक्त, मारवाड़ी भक्त, श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करके बिदा हुए ।
(क्रमशः)
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