गुरुवार, 13 जनवरी 2022

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🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*जिसकी खूबी, खूब सब, सोई खूब सँभार ।*
*दादू सुन्दरी खूब सौं, नखशिख साज सँवार ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
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भेष संत भक्तादि के, उनमें जो अनुरक्ति ।
सरल सुजन जन उसे ही, कहैं भेष की भक्ति ॥२२०॥
*॥ भेष भक्त को भेष मुक्ति हेतु जानते हैं ॥*
भेष भक्त निज भेष को, लाखें मुक्ति का हेतु ।
बहुमाला रस खान धर, कहते यही सचेतु ॥२२१॥
दृष्टांत कथा - भक्त रसखानजी अपने गले में बहुत-सी मालाएं पहनते थे । उनसे किसी ने पूछा - 'एक दो माला ही बहुत हैं, आप इतनी मालाएं क्यों पहनते हैं ?' रसखान - माला संसार सागर से पार उतारती हैं, जो छोटे पत्थर है उन्हें एक-दो ही माला बहुत है किन्तु मैं तो बड़े पत्थर के सदृश हूँ, इसलिये मुझे बहुत माला ही रखना चाहिये । इससे सूचित होता है कि भेष भक्त अपने भेष भक्त को अपने उद्धार का कारण मानते हैं ।

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