शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

*नन्ददास जी*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*जिनके हिरदै हरि बसै, सदा निरंजन नांऊँ ।*
*दादू साचे साध की, मैं बलिहारी जांऊँ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधु का अंग )*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*नन्ददास जी*
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*मू. छ. –*
*नन्द कुँवर सन१ नन्ददास,*
*हित चित बाँध्यो भाय के ॥*
*समय समय के शब्द, कहें रस ग्रन्थ बनाये ।*
*उक्ति चोज२ प्रस्ताव३, भजन हरि गान रिझाये ॥*
*महिमा सर४ पर्यन्त, रामपुर नगर विराजे ।*
*संत चरण रज इष्ट, सुकुल सर्वोपरि राजे ॥*
*भ्राता राघव चन्द्रहास, है सो सब गुण लायके ।*
*नन्द कुँवर सन नन्ददास,*
*हित चित बाँध्यो भाय के ॥२१०॥*
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नन्ददासजी का जन्म वि. स. १५७० में हुआ था । इनके पिता जीवाराम और काका आत्माराम थे । ये शुक्ल ब्राह्मण थे । नन्दकुमार श्री कृष्ण भगवान् से१ भावपूर्वक अपना मन बाँधकर अर्थात् लगाकर ही नन्ददास जी ने अपना हित समझा था ।
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आपने श्री युगललीला के समय समय के पद कहें हैं और रसरीति पद ग्रंथ की रचना की है ।
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चमत्कार२ पूर्ण उक्ति तथा दृष्टान्तों३ से युक्त भजन गाकर आपने हरि को प्रसन्न किया है ।
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आपकी महिमा समुद्र४ तक फैल गई थी । आप रामपुर ग्राम में निवास करते थे ।
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आप सर्वोपरि शोभा देनेवाले ब्राह्मण कुल के थे, फिर भी संत चरण रज को ही इष्ट मान कर संतों की सेवा करते थे ।
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चन्द्रहासजी के बड़े भ्राता नन्ददासजी सभी सद्गुणों के लायक थे अर्थात् उनमें सभी सद्गुण थे । आप श्री कृष्ण यश काव्य वाले अष्ट छाप के(आठ प्रसिद्ध) भक्तों में से एक हैं | आपके ग्रन्थ “पंचाध्यायी, रुक्मणि-मंगल, नाममाला, अनेकार्थ, दानलीला, मानलीला आदिक प्रसिद्ध है । ‘अष्टछाप’ में ये संत हैं – १. सूरदास, २. कृष्णदास, ३. परमानन्द, ४. छीतस्वामी, ५. चतुर्भुजदास, ६. व्यासदास, ७. नन्ददास, ८. हरिदास ।
(क्रमशः)

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