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*दादू शब्द विचार करि, लागि रहे मन लाइ ।*
*ज्ञान गहै गुरुदेव का, दादू सहज समाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*गोमति न्हाय रु लेवत छाप हि,*
*देखत हूं रणछोड़ पुरी को ।*
*तीन हु बात इहां हि लहो तुम,*
*सोच करो मत देख हरी को ॥*
*मान लिई पहुँचावन जावत,*
*आय घरां नृप जान खरी को ।*
*दोय गये दिन सोवत हो निशि,*
*आय कही उठ लेहु करी को ॥२०५॥*
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राजा ने कहा – भगवान् ! मेरे मन में थी कि गोमती का स्नान कर, भुजाओं में शंख चक्रादि छाप लगाकर, द्वारिका पुरी के नाथ रणछोड़ जी के दर्शन करूंगा ।
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गुरुजी ने कहा – तीनों बात तुमको यहां ही प्राप्त हो जायेंगी । चिन्ता मत करो तुम हरि का दर्शन करोगे ।
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राजा ने गुरुजी की आज्ञा मानली । फिर गुरुजी ने द्वारिका को प्रस्थान किया तब राज दूर तक पहुँचाने गये । गुरुजी के वियोग से राजा को दुःख हो गया किन्तु गुरुजी की वाणी को सत्य जानकर घर पर आये ।
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द्वारिका नहीं जाने के अनुताप में दो दिन व्यतीत हुये, तीसरे दिन रात्रि को सोने लगे तब कृष्णदासजी का भक्ति युक्त वचन भगवान् के मन में आया । तब भगवान् स्वयं साक्षात् आके राजा से मधुरवाणी बोले – “उठकर जो इच्छा करी थी सो प्राप्त करलो ।”
(क्रमशः)
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