बुधवार, 2 मार्च 2022

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🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*दादू खालिक खेलै खेल कर, बूझै बिरला कोइ ।*
*लेकर सुखिया ना भया, देकर सुखिया होइ ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥वात्सल्य भक्ति॥*
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*सुत सम प्रभु में होत है, जो विशेष अनुरक्ति ।*
*भक्ति विशारद उसे ही, कहैं वात्सल्य भक्ति ॥२३९॥*
*॥ ईश्वरता देख कर भी वात्सल्य भक्त प्रभु को पुत्र ही जाने ॥*
ईश्वरता लख भी लखें, वात्सल्य जन पुत्र ।
कौसल्या अरु देवकी, नन्द रानि लख अत्र ॥२४०॥
दृष्टांत कथा -
१. एक समय माता कौसल्या रामजी को पालने में सुलाकर कुल देवता पूजने को गईं । पूजा के समय देवता के स्थान पर रामजी को देखा और आश्चर्य चकित होकर पालना को देखने गई तो वहां भी रामजी को सोते देखा । ऐसे ही दो-चार वार देख कर चिन्तित हुई । तब रामजी ने अपने स्वरूप तथा माया का दर्शन कराया । अनन्त ब्रह्माण्ड रूप ऐश्वर्य देखकर के भी वह रामजी को पुत्र ही मानती रही ।
२. देवकीजी के जन्म समय ही चतुर्भुज देखा था, यह प्रसिद्ध है । फिर भी श्री कृष्ण को पुत्र ही मानती रही । 
३. नन्दरानी यशोदा ने भी मुख में सब विश्व देखा था, फिर भी श्री कृष्ण को पुत्र ही मानती रही । इससे सूचित होता है कि वात्सल्य भक्त ईश्वर की ईश्वरता देख करके भी ईश्वर को पुत्र ही मानते रहते हैं ।

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