शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

*नामदेव नाम को पुंज इसो सु*

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*दादू समर्थ सब विधि सांइयाँ, ताकी मैं बलि जाऊँ ।*
*अंतर एक जु सो बसै, औरां चित्त न लाऊँ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*मू. इ. –*
*नामदेव नाम को पुंज इसो सु,*
*सदा रसना रूचि रामजी गायो ।*
*ऐसो भयो गुनी१ दीन२ दुनी३ बीच,*
*प्रीति प्रचै४ प्रतिमा पय पायो ॥*
*पैंज५ रही पतिस्या६ दरबार में,*
*गाय जीवाय के बच्छ मिलायो ।*
*राघो कहे परचौ७ परचे पर,*
*देहुरो फेरि दुनी दिखरायो ॥२२७॥*
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श्रेष्ठ भक्त नामदेवजी ऐसे प्रतीत होते थे मानो भगवान् के नामों की तो राशि ही हैं । सदा प्रीति पूर्वक रसना से रामजी के नाम गाते ही रहते थे ।
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और संसार३ के धर्मों२ के मध्य तो अर्थात् धर्मानुयायियों के बीच तो वे ऐसे सद्गुणी१ होकर चमक उठे थे कि बचपन में ही अपनी प्रीति से भगवान् से परिचित४ होकर मूर्ति को भी दूध पिला दिया था ।
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बादशाह६ के दरबार में भी उनकी भक्ति रूप प्रतिज्ञा४ की लाज रह गई थी । उनने संकीर्तन द्वारा गाय को जीवित करके बछड़े को मिला दिया था अर्थात् बछड़े ने उसका दूध पी लिया था ।
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उनकी शक्ति का परिचय७ पर परिचय मिलता रहा था अर्थात् बारंबार उनकी शक्ति देखी गई थी । उनके लिये भगवान् ने मंदिर फेर करके संसार को दिखा दिया था । 
(क्रमशः)

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