शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ ५३/५६*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
.
*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ ५३/५६*
.
मछली की गम२ नीर मंहि, साधन की गम रांम ।
कहि जगजीवन त्रिया३ गम, भुवन मांहि सब ठांम ॥५३॥
{२. गम=गति(पहुँच)} (३. त्रिया=स्त्री)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मछली सिर्फ जल चिंतन तक साधक सिमरण के चिंतन तक व्यस्त रहते हैं । किंतु स्त्री को भुवन भर की चिन्ता है, या उसकी पहुंच है वह सर्वत्र विचार द्वारा विचरण करती है ।
.
किया नांहि तहँ सब किया, रांम क्रिषण अवतार ।
कहि जगजीवन वो ओम करि, करतन लागै बार ॥५४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जहाँ कुछ भी करणीय नहीं था वहां भी जीव ने सब किया । इस कारण अधर्म बढा और प्रभु राम कृष्ण का अवतार हुआ । उसे ही औंकार कहा गया । फिर बाद में वे देह धारी हुये ।
.
कहि जगजीवन रांमजी, सकल किया करि नाद ।
नांम निरंतर जिन लिया, तिन हरि पाया स्वाद ॥५५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि है प्रभु जी आपने ब्रह्म नाद से सब कुछ किया । और जिन्होंने आपका नाम सिमरण किया उन्होंने ही नाम की महिमा जानी है ।
.
क्रिष्ण किया ब्रह्मा किया, संकर किया उपाइ ।
कहि जगजीवन किया नंहि, किया पिछांणै ताहि ॥५६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हमने अपने साधन हेतू कृष्ण भजे, ब्रह्मा भजे, शिव भजे पर हमने निस्वार्थ भाव से कुछ भी नहीं किया । प्रभु तो निस्वार्थ भाव से किया ही जानते हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें