सोमवार, 2 मई 2022

*हाथ गह्यो लखि पीवत हूं अब*

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*दादू कहै,*
*तन मन तुम पर वारणैं, कर दीजे कै बार ।*
*जे ऐसी विधि पाइये, तो लीजे सिरजनहार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विरह का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*बीत गये दिन दोय न पीवत,*
*सोय रह्यो निशि नींद न आवै ।*
*प्रात भयो अवटाय लियो फिर,*
*जा अरप्यो अब पी मन भावै ॥*
*जोड़ि कहूं कर जो नहिं पीवत,*
*खंजर खाय मरूं गल लावै ।*
*हाथ गह्यो लखि पीवत हूं अब,*
*पीवत देख सु आप खुसावै ॥२१९॥*
नामदेवजी ने बहुत प्रार्थना की किन्तु प्रभु ने दूध नहीं पिया । तब आपने भी उपवास ही किया । दूसरे दिन फिर पूर्ववत ही सब करके दूध पीने के लिये प्रार्थना की तब भी प्रभु ने नहीं पिया । दोनों दिन दूध नहीं पीने की बात माता को नहीं कही । भूखे ही चुपचाप रात्रि में सो रहे किन्तु नींद किंचित भी नहीं आई । केवल प्रभु के दूध न पीने की चिन्ता में ही रात्रि व्यतीत हो गई ।
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तीसरे दिन का प्रातःकाल हुआ तब फिर उक्त प्रकार ही पूजा आदि करके दूध गर्म किया । फिर लेजा कर भगवान् के समर्पण किया और कहा – हे प्रभो ! मेरा भाव यही है कि अब तो आप दूध पी लीजिये ।
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मैं हाथ जोड़कर कहता हूं, यदि आप नहीं पीयेंगे तो मैं कटार खाकर मर जाऊंगा । कारण – ये तो यही समझते थे कि नानाजी के हाथ से भगवान् प्रतिदिन दूध पीते हैं, मेरे हाथ से नहीं पीते तब नानाजी मुझे सेवा-पूजा कैसे देंगे फिर इससे तो मर जाना ही अच्छा है 
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ऐसा समझकर कटार गले पर लगाने लगे तब भक्त वत्सल भगवान् ने नामदेव का कटार वाला हाथ पकड़कर कहा - ऐसा मत कर । देख, मैं दूध पीता हूँ । दूध का कटोरा हाथ में लेकर भगवान् पीने लगे । तब नामदेव बड़े प्रसन्न हुये । थोड़ा-सा दूध रह गया तब नामदेव बोले – प्रसाद तो रहने दीजिये । नानाजी मुझे दूध का प्रसाद देते थे । यह सुनकर भगवान् प्रसन्न हुये और नामदेव के लिये प्रसाद छोड़ दिया । फिर नामदेव ने दूध का कटोरा भगवान् के हाथ से खोसकर अपने हाथ में लिया ।
(क्रमशः)

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