मंगलवार, 7 जून 2022

*विप्र कहै अब बैठि रहो इत*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*सीप सुधा रस ले रहै, पीवै न खारा नीर ।*
*मांहैं मोती नीपजै, दादू बंद शरीर ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ मन का अंग)*
===========
*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
.
*विप्र कहै अब बैठि रहो इत,*
*आयसु मेट सकूं नहिं बाई ।*
*ऊठ चल्यौ समझे रहे जन,*
*सोच परयो् समझो मन भाई ॥*
*बालहिं को द्विज बात कहै कछु,*
*तू हु विचार कहूं उठि जाई ।*
*हाथ हि जोरि कहै अलि जोर न,*
*यो तन तो तजि हूं मन आई ॥२३४॥*
तब भक्त ब्राह्मण ने अपनी कन्या को कहा – अब तुम यहां इनके पास ही बैठी रहो । कारण – भगवान् जगन्नाथजी की आज्ञा तो बाई ! मैं मेट नहीं सकता ।
.
ऐसा कहकर तथा कन्या को बैठाकर ब्राह्मण उठ के चल पड़े । जयदेवजी ब्राह्मण को समझाकर हार गये किन्तु ब्राह्मण ने उनकी बात नहीं मानी । तब जयदेव अपने मन को कहने लगे – हे भैया मन ! तुम भी समझ पूर्वक विचार करो कि अब क्या करना चाहिये ? क्योंकि यह बड़ी चिन्ता की बात सामने आ पड़ी है ।
.
फिर जयदेवजी उस ब्राह्मण की पुत्री को भी विचार करने योग्य बात कहने लगे कि – तुम भी तो पति बनाना चाहती हो । उसकी योग्यता और निर्वाह आदि का भी कुछ विचार करो । फिर जैसा करना उचित समझो वैसा निश्चय करके यहां से उठ जाओ यहां मत बैठी रहो । तुम्हारा पालन पोषण मुझ से नहीं हो सकेगा ।
.
तब सखी पद्मावतीजी हाथ जोड़कर कहने लगी – नाथ मेरा तो कुछ भी बल या विचार नहीं चलता । अब जो चाहे सो हो, मैं तो पिता के देने से प्रभु की आज्ञा से आपको श्री जगन्नाथजी ही जानकर तथा अपना स्वामी मान कर यह शरीर तो आप पर ही निछावर कर चुकी हूं, यही बात मेरे मन में उत्पन्न हुई है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें