मंगलवार, 5 जुलाई 2022

*देह तजै पति प्राण तजानी*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*खेलै शीश उतार कर, अधर एक सौं आइ ।*
*दादू पावै प्रेम रस, सुख में रहै समाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ शूरातन का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*जाकर ल्यात भयो पदमावति,*
*स्वामि मिलावत आवत रानी।*
*भ्रात मुवो तिय होत सती किन,*
*अंग कटे इक डाकि परानी ॥*
*भूप तिया अचरज्ज करै यह,*
*नांहिं करें फिर वा समझानी।*
*या हि प्रकार कि प्रीति न मानत,*
*देह तजै पति प्राण तजानी ॥२४७॥*
राजा की प्रार्थना जयदेवजी ने मान ली तब राजा किन्दुबिल्व जाकर सादर पद्मावती जी को लाकर उनके स्वामी जयदेवजी को मिला दिया। अब आप दोनों यहाँ ही रहने लगे। राजा की राणी भी पद्मावती जी के पास दर्शन और सत्संग के लिये आया करती थीं।
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एक दिन राणी पद्मावतीजी के पास बैठी थीं, उसी समय किसी दासी ने आकर कहा- आपके भाई का देहान्त हो गया है और आपकी भौजाइयों में से कोई तो सती हो गई है, कोई शस्त्र से अंग काट कर मर गई है, कोई दौड़कर चिता में कूद पड़ी है।
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यह सुनकर रानी उन सबके प्रीति और पतिव्रत का परम आश्चर्य मानकर विस्मित हो रही थीं किन्तु पद्मावती जी ने इस बात का कुछ जाना, जल जाना, इस प्रकार की रीति ही प्रीति नहीं मानी जाती है।
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प्रीति की रीति तो यह है कि पति का शरीर छूटते ही पत्नी का शरीर भी छूट जाय।
(क्रमशः)

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