मंगलवार, 26 जुलाई 2022

*श्री रज्जबवाणी पद ~ ४४*

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*सरवर भरिया दह दिसा, पंखी प्यासा जाइ ।*
*दादू गुरु प्रसाद बिन, क्यों जल पीवै आइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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४४ सदगुरु बिना मुक्ति नहीं । कहरवा
सुन सुन बातैं वेद की, चखि१ चौधि२ सयाने ।
दह३ दिशि दौड़े दूर को, उर अठसठ ठाने४ ॥टेक॥
भागवत कहै भगवंत दश, भोले सुन भूले ।
स्वर्ग नरक मधि लोक में, मतिमान सु डूले५ ॥१॥
सगुण निर्गुण एक है, नित निगम बतावे ।
यूं आतम उरझी उरै६, सो सुलझ न आवे ॥२॥
संशय सबल न भाग ही, व्याकरण विचारा ।
जन रज्जब सदगुरु बिना, जीव होय न पारा ॥३॥४४॥
सदगुरु बिना मुक्ति नहीं होती, यह कह रहे हैं -
✦ वेद की नाना भांति की बातैं सुनकर चतुर मानवों के बुद्धि-नेत्र१ भी तिलमिला२ जाते हैं । दशों३ दिशाओं में दूर दूर दौड़कर आते हैं, हृदय में अड़सठ तीर्थों में जाने का विचार करते४ हैं ।
✦ भागवत दश भगवान कहती है, भोले लोग सुनकर भ्रम में पड़ जाते हैं, स्वर्ग नरक और मध्य को पृथ्वी लोक में बुद्धिमान भी उक्त प्रकार की बातों से चलायमान५ हो जाते हैं ।
✦ सगुण और निर्गुण एक ही है, यह सदा वेद बताता है, ऐसा कहते हैं । इस प्रकार की बातों से जो जीवात्मा निर्गुण ब्रह्म से दूर६ सगुण में उलझा रहता है, सुलझकर निर्गुण ब्रह्म तक नहीं आ पाता ।
✦ उक्त सबल संशय व्याकरण के विचार से दूर नहीं होता । अत: सदगुरु के बिना जीव संसार से पार नहीं हो पाता ।
इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित राम गिरी राग १ समाप्तः ।
(क्रमशः)

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