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*काहे रे मन भूल्यो फिरत है, काया सोच विचार ।*
*जिन पंथों चलना है तुझ को, सोई पंथ सँवार ॥*
*आगै बाट बिषम जो मन रे, जिमि खांडे की धार ।*
*दादू दास सांई सौं सूत कर, कूड़े काम निवार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद. ९६)*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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३६. प्रभु को मत भूल । चौताल
सुन संसारी सीख को, मत भूले भाई ।
जिहिं पंथ प्रीतम पाईये, तिहिं मारग जाई ॥टेक॥
विषयों से विगता१ रही, मत करै सगाई२ ।
मूसा मीनी३ को मिल्यों, मेल्हे गटकाई४ ॥१॥
सुरही५ सिंह हि क्यों बने, सो शोधर खाई ।
अईया६ मूढ अज्ञान मन, घर बैठा जाई ॥२॥
जो जंजाल७ जीव सौं कट्या, सो फेरि न लाई ।
जन रज्जब गत८ ऊपरै, वित९ भूल न जाई ॥३॥३६॥
कुसंग द्वारा प्रभु को मत भूल यह कह रहे हैं -
✦ हे भाई ! सांसारिक प्राणियों की सीख को सुनकर प्रभु को मत भूल । जिस साधन मार्ग में प्रभु प्राप्त होते हैं उसी मार्ग में चल अर्थात भजनादि साधन कर ।
✦ विषय से अलग१ रह, उनसे संबन्ध२ मत कर । चूहा मिलते ही बिल्ली३ उसे निगल४ कर पेट में रख लेती है ।
✦ गाय५ का और सिंह का प्रेम कैसे हो सकता है ? वह तो गाय को खोज कर खा जाता है । अरे६ मूर्ख अज्ञानी मन ! विषयों से मिलने पर यही दशा तेरी होगी । तू अब तो प्रभु रूप घर में जा बैठा है ।
✦ जो जम७-जाल जीव कट गया है, उसको पुनः नहीं लगा । हीन८ विषयों पर मोहित हो अपने प्रभु रूप हृदय धन९ को भूल कर संसार में मत जा ।
(क्रमशः)
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