शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

*जान गये रम जात भये दुख*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
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*हिरदै की हरि लेइगा, अंतरजामी राइ ।*
*साच पियारा राम को, कोटिक करि दिखलाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ भेष का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*जात भई सु परोसनि के तिय,*
*बूझत गात मीन सु क्यों है।*
*हँसि कहै इक चाकर राखत,*
*धापत नांहिं डरूं सुन यौं है ॥*
*नांहिं कहो किन राखि मनो-मन,*
*कान परे उठ जावत त्यूं है।*
*जान गये रम जात भये दुख,*
*पातनये बिन पै शिशु ज्यूं है॥२५६॥*
एक दिन घर की चक्की टचाई थी। इसलिये पड़ोसन के यहाँ भक्त की पत्नी पीसने गई थी। पड़ोसिन ने पूछा—तुम तो सदा साफ रहा करती थी, आज तुम्हारा शरीर और वस्त्र मलिन क्यों है ?
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भक्त की पत्नी हँसकर बोली- हमारे यहाँ एक नौकर रखा है, वह तो बहुत अच्छा किन्तु खाता बहुत है, तृप्त होता ही नहीं। इसलिये पीसने और बनाने में ही लगी रहती हूँ, कपड़ा धोने का अवकाश मिलता ही नहीं है। यह बात दूसरे को कहने से भी डरती हूँ, कारण- वह ऐसे सुन लेगा तो चला जायगा।
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तुम भी किसी को नहीं कहना, अपने मन की मन में ही रखना। यदि नौकर के कान में पड़ गई तो वह घर से चला जायगा। ऐसा ही उसका स्वभाव है। इधर यह बात पड़ोसि को कही और उधर अन्तर्यामी अन्तर्द्धान हो गये।
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अन्तर्यामी तो थे ही, जानकर तत्काल घर से चलें गये। तब भक्त को एक नया दुःख हो गया, जैसे दूध बिना बच्चा दुखी होता है, वैसे ही अन्तर्यामी का बिना भक्त को बड़ा दुःख हुआ।
(क्रमशः)

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