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*तिल तिल का अपराधी तेरा, रती रती का चोर ।*
*पल पल का मैं गुनही तेरा, बख्शो अवगुण मोर ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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अथ रागमाली गौड़ २
(गायन समय संध्या ५ से ९ रात्रि)
४५ दोष मुक्त हित पुकार । त्रिकाल
जालिम१ दिवान२ तेरा, कोई नांहिं बदी३ नेरा ।
सब रोज गुनहगार४ बंदा५, क्या हवाल६ मेरा ॥टेक॥
चंद७ जाहिर८ गुनाह९, नेकी१० नहिं नेरा ।
नाम नेस्त११ दिगर१२ पेश१३, पुर१४ दरोगा१५ देरा१६ ॥१॥
तालिब१७ खुद ख्वाब१८ करद१९, गाफिल बहुतेरा ।
बदी२० बिसियार२१ फैल, होय क्यों निबेरा२२ ॥२॥
तरस२३ पुरसिश२४ दोस, जाहिर जब घेरा ।
रज्जब विचार करि पुकार, ओर रह न नेरा ॥३॥१॥
दोषों से मुक्त होने के लिये पुकार कर प्रार्थना कर रहे हैं -
✦ हे मालिक२ ! मैं आपका क्रूर१ दास५ हूँ, मेरे समान बुराई३ के पास रहने वाला आपका सेवक कोई भी नहीं होगा । मैं तो प्रतिदिन अपराधी४ ही रहा हूँ मेरा क्या हाल६ होगा ।
✦ मेरे कुछ७ दोष९ तो प्रकट८ ही हैं और भलाई१० तो मेरे समीप ही नहीं है । नाम चिन्तन रूप साधन भी मुझ से नहीं११ होता, दूसरे१२ ही सामने१३ आते हैं । मेरा हृदय-मंदिर१६ असत्य१५ से भरा१४ हुआ है ।
✦ मैं आपको खोजनेवाला१७ स्वयं ही स्वप्न१८ के से विचार करके१९ बहुत असावधान हो रहा हूँ । बहुत अधिक२१ बुराई२० करके भी भलाई के फैल करता रहा हूँ । मेरी मुक्ति२२ कैसे होगी ?
✦ जब दोषों ने मुझे प्रकट रूप में आ घेरा है, तब भय२३ से मैंने आपसे पूछा२४ है । मैं विचार पूर्वक आप से पुकार कर प्रार्थना कर रहा हूँ, अब आप ऐसी कृपा करैं कि - आपके बिना अन्य कोई भी मेरे समीप न है अर्थात सर्वत्र आपका ही दर्शन होता रहे ।
(क्रमशः)

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