🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#श्री०रज्जबवाणी* 🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*सत गुरु किया फेरि कर, मन का औरै रूप ।*
*दादू पंचों पलटि कर, कैसे भये अनूप ॥*
===================
*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
४६ ज्ञानाग्नि । चौताल
सतगुरु घर जारा हो, सदगुरु घर जारा ।
प्राण१ पोष धाम दोष, अग्नि के आहारा ॥टेक॥
ज्वाला जल मांहि डारि, सब समुद्र चारा ।
मीन मगन अग्नि मध्य, अचरज व्यवहार ॥१॥
दौं२ प्रसंग दग्ध होत, धरनी३ नीर सारा ।
है है हैरान४ है, हरी अठार५ भारा ॥२॥
रज्जब यहु कहै काहि, कौन सुनन हारा ।
देखे कोई कोटि मध्य, अगनि का पसारा ॥३॥२॥
सदगुरु द्वारा प्राप्त ज्ञान रूप अग्नि का प्रभाव बता रहे हैं -
✦ सदगुरु ने हमारे हृदय घर में ज्ञानाग्नि जला दिया है, खुब जला दिया है । जीवात्मा१ का इससे बड़ा पोषण हुआ है और हृदय धाम के सब दोष ज्ञानाग्नि के भोजन बन गये हैं अर्थात नष्ट हो गये हैं ।
✦ भगवान प्रेम रूपी पानी में ज्ञानाग्नि की ज्वाला डाल दी है, उसने विषय रूप समुद्र को अपना भोजन बना लिया है अर्थात विषयाशा नष्ट कर दी है । बुद्धि रूप मच्छी इस ज्ञानाग्नि में अति हर्षित हो रही है ।
✦ इस ज्ञान रूप दावाग्नि२ के प्रंसग से मायिक३ राग रूप संपूर्ण पानी जल गया है किंतु मन वचन कर्म से बड़ा ही आश्चर्य४ देखने में आता है कि – अठारह५ भार वनस्पति इस अग्नि से हरी हो रही हैं अर्थित शरीर के रोम हर्ष से खड़े हो रहे हैं ।
✦ यह बात हम किसको कहैं, कौन सुनने वाला है ? इस ज्ञानाग्नि के विस्तार को तो कोटि संख्या में से कोई एक व्यक्ति ही देख सकता है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें