शुक्रवार, 9 सितंबर 2022

*२५. सबद कौ अंग ~ ६५/६७*

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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२५. सबद कौ अंग ~ ६५/६७*
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सबद अनंत अगाध हरि, अविगति नाद अवाज ।
कहि जगजीवन हनो हाक५ करि, इंद्र६ गगन मंहि गाज ॥६५॥
(५ हनौ हाक-गर्जना कर मार गिरावै) (६. इंद्र-वर्षाभिमानी देवता)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु अनंत है अगाध है और उनकी महिमा के नाद घोष है वे जैसे इन्द्र गगन में गरजते हैं वैसे ही वे भी प्रचुर मात्रा में ध्वनित होते हैं ।
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कहि जगजीवन अनहद कहै, सो हरि अनभै नांम ।
बोला अलख अबोल हरि, जिस घरि राखै रांम ॥६६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो अनहद की बात कहते हैं वे हरि नाम स्मरण के अनुभव से कहते हैं । जिस घर में राम नाम है वहां न बोलने वाले प्रभु भी बोलते हैं ।
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कै सुभ कहै कि असुभ कहै, कही कहै धरि नांम ।
कहि जगजीवन अकह कहै, अगम ठौर जिन ठांम ॥६७॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि कोइ शुभ होता है कोइ अशुभ है ये तो मनुष्य के रखे नाम मात्र है । प्रभु तो बिना कहे हु सब कह देते हैं कृपासे और जहां पहुंच पाना मुश्किल है । वहां लेजाकर अपने जन को रखते हैं ।
(क्रमशः)

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