रविवार, 9 अक्टूबर 2022

*प्रेम मध्य पियो विष पद गाये अह निश*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*मीठे का सब मीठा लागै, भावै विष भर देइ ।*
*दादू कड़वा ना कहै, अमृत कर कर लेइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*मनहर*
*रामजी की भक्ति नहीं भाव काहू दुष्टन को,*
*मीराँ भई वैष्णव१ जहर दीन्हों जान के ।*
*राणों कहै मारै लाज मारि डारों याहि आज,*
*आप करै कीरतन संत बैठें आन के ॥*
*प्रेम मध्य पियो विष पद गाये अह निश,*
*भै न व्याप्यो नैक हूं न लीन्हों दुख मान के ।*
*राघो कहै राणों मुख्य वैरी सर्व राज लोग,*
*मीराँ बाई मगन भरोसे चक्रपान२ के ॥२४४॥*
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मीराँ जी भगवान् की भक्त१ हो गई थीं किन्तु रामजी की भक्ति किसी भी दुष्ट को प्रिय नहीं लगती। इसी से जानबूझ कर मीराँ बाई को मारने के लिये विष दिया गया था।
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राणा विक्रमादित्य ने कहा कि—यह साधुओं में बैठकर हमको लज्जित करती है। इससे इसे आज ही मार डालो। तो भी मीराँबाई निर्भय होकर कीर्तन करती थीं और संत जन आकर बैठे हुये थे। उसी समय लाकर विष दिया गया।
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प्रभु प्रेम में निमग्न मीराँ बाई ने विष पान कर लिया और रात्रि दिन आठ पहर तक हरि यश के पद गाती रही। मीराँजी को उस हालाहल विष से किंचित मात्र भी भय नहीं हुआ और न उनने दुःख मानकर उसे पान किया था, उनने तो हरि चरणामृत मान कर सहर्ष पान किया था।
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मीराँजी के वैरी तो राजपरिवार के सभी लोग थे उनमें सबमें मुख्य वैरी राणा विक्रमादित्य था परन्तु मीराँबाई तो चक्रपाणि२ भगवान् गिरधर गोपाल के भरोसे थी। इससे प्रभु-प्रेम में ही निमग्न रहती श्रीं ॥२४४॥
(क्रमशः)

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