बुधवार, 12 अक्टूबर 2022

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*दादू सतगुरु कहै सो कीजिये, जे तूं सिष सुजाण ।*
*जहाँ लाया तहँ लागि रहु, बुझे कहा अजाण ॥*
*दादू कहि कहि मेरी जीभ रही, सुनि सुनि तेरे कान ।* 
*सतगुरु बपुरा क्या करै, जो चेला मूढ़ अजान ॥*
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साभार : Subhash Jain
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गुरु कहै सो कीजिए करै सो कीजै नाहिं।
बड़ा अनूठा वचन है और एकदम से समझ में न पड़े ऐसा वचन है। समझ पड़ जाए तो बड़ी संपदा हाथ लग गई।
"गुरु कहै सो कीजिए करै सो कीजै नाहिं।"
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उलटा लगता है। साधारणत तो हम सोचेंगे गुरु जैसा करे वैसा करो। लेकिन चरणदास कहते है गुरु जो कहे वैसा करो जो करे वैसा नहीं। क्यों? क्योंकि गुरु जो कर रहा है वह तो उसकी आत्मदशा है। गुरु का कृत्य तो उस पार का कृत्य है।
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गुरु जो बोलता है वह तुमसे बोलता है। इसलिए तुम्हारा ख्याल रख कर बोलता है। गुरु जो करता है वह अपने स्वभाव से करता है अपनी स्थिति से करता है अपनी समाधि से करता है। गुरु का कृत्य उसके भीतर से आता है। गुरु के शब्द तुम्हारे प्रति अनुकंपा से आते हैं। इस भेद को खूब समझ लेना।
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तो गुरु के शब्द ही तुम्हारे लिए सार्थक है- गुरु का कृत्य नहीं। हाँ, शब्दोें को मान कर चलते रहे तो एक दिन गुरु के कृत्य भी तुममें घटित होंगे। वह अपूर्व घड़ी भी आएगी वैसा सूरज तुम्हारे भीतर भी उगेगा। वैसे मेघ तुम्हारे भीतर भी घिरेंगे। वैसा मोर तुम्हारे भीतर भी नाचेगा। वैसी वर्षा निश्चित होनी है।
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लेकिन अगर तुमने पहले से ही गलत कदम उठाया गलत कदम यानी गुरु ने जैसा किया वैसा किया- तो चूक जाओगे। और आमतौर से आदमी वही करता है। आदमी कहता है कि गुरु जैसा करता है वैसा ही हम करें तो गुरु जैसे हो जाएँगे। कभी न हो पाओगे। तुम्हारा कृत्य ही तुम्हारे मार्ग में बाधा बन जाएगा।
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यह भी मन में विचार उठते हैं बार-बार कि मुझसे ऐसा कहा लेकिन खुद तो ऐसा करते हैं तो मैं क्यों मानूँ ? तथाकथित विचारशील लोग जो बहुत विचारशील नहीं हैं ज्यादा से ज्यादा थोड़े तर्कनिष्ठ हैं उन सब ने यही समझाया है कि गुरु का वक्तव्य और व्यक्तित्व एक सा होगा। यह बात गलत है। गुरु का वक्तव्य और व्यक्तित्व अगर एक सा होगा तो वह व्यक्ति गुरु हो ही नहीं सकता। वह किसी के काम का नहीं होगा।
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गुरु का व्यक्तित्व एक होगा और उसके वक्तव्य तो बहुत तरह के होंगे। क्योंकि जितने लोगों को वक्तव्य देगा उतने तरह के होंगे। सदा ध्यान में रखो क्या कहा गया है। उसी को करो उतना ही करो। और जो तुमसे कहा गया है उसे तो बिल्कुल बहुमूल्य सम्पदा की तरह सुरक्षित रखना। हर आदमी की अलग दशा है।
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याद रखना ! इतने दिन तक चूकते रहे चलेगा। लेकिन गुरु मिला और फिर चूके फिर नहीं चलेगा। फिर तो निश्चित ही तुम अपराधी हो। फिर तो तुम बहाने ही कर रहे थे इतने दिन से कि गुरु नहीं है इसलिए कैसे जाएँ उस पार। कोई नाव का खेवैया नहीं, कोई पतावर को सम्हालने वाला नहीं कैसे जाएँ उस पार !
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तो इतने दिन तक तुम जो बाते कर रहे थे- कैसे जाएँ उस पार वे सब झूठी मालूम पड़ती है। तुम जाना नहीं चाहते थे। अब खेवैया मिला अब नाव द्वार पर खड़ी है पतवार तैयार है बस तुम्हारे बैठने की देर है कि नाव छूटे लेकिन तुम नाव में बैठते नहीं।
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ओशो

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