मंगलवार, 3 जनवरी 2023

*लीजै दीजै खाजै बांटि*

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*दादू काया कारवीं, देखत ही चल जाइ ।*
*जब लग श्‍वास शरीर में, राम नाम ल्यौ लाइ ॥*
*दादू काया कारवीं, मोहि भरोसा नांहि ।*
*आसन कुंजर शिर छत्र, विनश जाहिं क्षण मांहि ॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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मरिये तौ धन काहे कूँ करिये । 
औंडा ले ले क्यांहनैं धरिये ॥टेक॥
पातिसाह ले भर्या भण्डार । 
मरतां रती न चाल्या लार ॥
लीजै दीजै खाजै बांटि । 
सो आगां नैं थारी गांठि ॥
साधां सगलां कह्यो पुकारि । 
रांम बिना जिव चाल्यो हारि ॥
टीला चेति र कियौ बिचार । 
त्यांहनैं तिरत न लागै बार ॥७॥
(पाठान्तर : १. कौं)
जब अन्ततः एक दिन धन को छोड़कर मरना ही है तब इसका उपार्जन, रक्षण और संचय क्यों किया जाए । क्यों गहरे गड्ढे खोद-खोदकर इसको रखा जाए ?
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बादशाह ने जानता से कर के रूप में, शत्रुओं को जीतकर उनका राज्य हथियार तथा अन्य नाना उपायों से इसका उपार्जन कर इससे अपने भण्डारों को भरा । फिर भी मरते समय इसमें से रत्तीभर भी उसके साथ नहीं गया । सारा का सारा यहीं रह गया ।
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अतः इसका संचय न करके इसको जरूरतमन्दों को देना चाहिए । जरूरत पड़ने पर लेना चाहिए । आवश्यकतानुसार खर्च करना चाहिए और आवश्यकता से अधिक को बाँट देना चाहिए । हे प्राणी ! इसका दान-पुण्य ही परलोक में काम आने के लिए भण्डार रूप है ।
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समस्त साधुओं ने डंके की चोट पुकार कर कहा है, जो रामजी का नाम-स्मरण नहीं करता तथा जरूरत से ज्यादा से ज्यादा पूँजी का दान नहीं करता वह अपना मनुष्य जन्म हारकर ही परलोक में जाता है ।
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टीला ने गुरुज्ञान को पाकर उसका विचार किया है कि जो रामनाम स्मरण और दान-पुण्य करते हैं उनको भवसागर को पार करने में तनिक भी देरी नहीं लगती ॥७॥
(क्रमशः)

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