सोमवार, 16 जनवरी 2023

शब्दस्कन्ध ~ पद #२८४

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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #२८४)*
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*२८४. नाम समता । उत्सव ताल*
*माधइयो-माधइयो मीठो री माइ,*
*माहवो-माहवो भेटियो आइ ॥टेक॥*
*कान्हइयो-कान्हइयो करता जाइ,*
*केशवो केशवो केशवो धाइ ॥१॥*
*भूधरो भूधरो भूधरो भाइ,*
*रमैयो रमैयो रह्यो समाइ ॥२॥*
*नरहरि नरहरि नरहरि राइ,*
*गोविन्दो गोविन्दो दादू गाइ ॥३॥*
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भादी-अनन्तानन्त भगवन्नामानि तानि सर्वाणि समानार्थकानि भवन्ति । तत्र लीलाभेदेन गुणकर्मविशेषेण भेदरचौधाथिको न तु वास्तविकः । अत साधक किमपि नाम जपेत् । गोविन्द दामोदर, केशव, भूवर, माधव, नरहरि, गोपालादि शब्दानां जपस्य फलमपि समानमेव ।
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भगवान् के अनन्त अनन्त नाम है । वे सब समान अर्थ को ही बतलाते हैं । अतः नाम में कोई भेद नहीं है, लीला गुण कर्म भेद से जो नामों में भेद भासित हो रहा है, वह तो उपाधिकृत होने से वास्तविक नहीं है । जैसे माधव, केशव, मोहन, कृष्ण, भूधर, राम, गोविन्द आदि शब्दों से एक ही भगवान् का बोध होता है । अतः साधक किसी भी नाम को जपे, कोई भी भेद नहीं है । फल भी जपने वालों को समान ही मिलता है ।
(क्रमशः)

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