बुधवार, 4 जनवरी 2023

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*सतगुरु की समझै नहीं, अपणै उपजै नांहि ।*
*तो दादू क्या कीजिए, बुरी बिथा मन मांहि ॥*
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साभार : @Subhash Jain
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*एक शिक्षक सिखाता है और एक सद्गुरू जीवन जीता है*
-तुम उसके जीवन से सीख सकते हो, जिस तरह से वह चलता है, जिस तरह से तुम्हारी ओर देखता है, जिस तरह से तुम्हें स्पर्श करता है, वह मार्ग ही होता है। तुम उसे मन में धारण कर सकते हो, तुम उसके घटित होने को स्वीकार कर सकते हो, तुम उपलब्ध बने रह सकते हो, तुम खुले हुए और सहन करने योग्य बन सकते हो।
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इस बारे में प्रत्यक्ष रूप से कहने का उसे कोई भी उपाय नहीं है, इसी कारण वे लोग जो बहुत विद्वान और बुद्धिमान हैं, वे उससे चूक जाते हैं- क्योंकि वे लोग सीखने का केवल एक ही रास्ता जानते हैं और वह है प्रत्यक्ष रूप से सीखना। वे पूँछते हैं-सत्य क्या है? और वे लोग एक उत्तर पाने की आशा रखते हैं।
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ऐसा ही तब घटित हुआ जब पोंटियस पाइलेट ने जीसस से पूँछा- ‘सत्य क्या है ?’- और जीसस मौन बने रहे-वे हिले-डुले भी नहीं, जैसे मानो प्रश्न पूंछा ही न गया हो, जैसे मानो पोंटियस पाइलेट वहाँ नहीं था और न वह उनके सामने वहाँ खड़ा हुआ उनसे कुछ पूँछ ही रहा था। जीसस वैसे ही समान बने रहे, जैसे कि वह प्रश्न उठाने से पूर्व थे, कुछ भी नहीं बदला। पोंटियस पाइलेट ने निश्चित रूप से यह सोचा होगा कि यह व्यक्ति थोड़ा-सा पागल है क्योंकि उसने प्रत्यक्ष प्रश्न करते हुए पूँछा था- ‘सत्य क्या है ?’ और यह व्यक्ति खामोश बना रहा, जैसे मानो उसने सुना ही न हो।
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पोंटियस पाइलेट एक वाइसरॉय था, भली-भाँति शिक्षित, सुसंस्कृत और एक विकसित बुद्धि का व्यक्ति था और जीसस एक अशिक्षित, अविकसित एक बढ़ई के पुत्र थे। यह ऐसे था, जैसे मानो दो विपरीत ध्रुव मिल रहे थे। पोंटियस पाइलेट सारा तत्वज्ञान जानता था, उसने सीखा था और वह सभी धर्मशास्त्रों को जानता था। यह व्यक्ति जीसस पूर्ण रूप से अशिक्षित था और वास्तव में वह कुछ भी नहीं जानता था- अथवा वह केवल ‘कुछ नहीं’ जानता था।
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पोंटियस पाइलेट के सामने पूर्ण रूप से खामोश खड़े हुए, उसने उत्तर दिया लेकिन वह उत्तर अप्रत्यक्ष था, उसने एक उँगुली ऊपर उठाई। सत्य की ओर उठी हुई वह उँगुली ही पूर्ण मौन था। लेकिन पोंटियस पाइलेट चूक गया। उसने सोचा, यह व्यक्ति पागल है। या तो यह बहरा है और सुन नहीं सकता, अथवा वह एक अज्ञानी है जो नहीं जानता है-और इसी कारण वह खामोश है। लेकिन मौन सत्य की ओर उठी हुई एक उँगुली हो सकती हैं, वह बात बुद्धिवादी पोंटियस पाइलेट के लिए अगम्य थी।
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वह चूक गया। वह एक महानतम अवसर था। हो सकता है कि वह तब भी ‘सत्य क्या है’ उसकी खोज में कहीं और भटक रहा हो। उस दिन सत्य उसके सामने खड़ा था। एक क्षण के लिए भी वह मौन हो सका होता? न पूँछते हुए यदि वह जीसस की उपस्थिति में ही बना रहा होता, केवल उन्हें देखते हुए, निरीक्षण करते हुए यदि वह प्रतीक्षा कर सका होता ? वह थोड़ा-सा जीसस को अपने हृदय में धारण कर सका होता ? यदि वह जीसस को अपने ऊपर कार्य करने की अनुमति दे सका होता ? वहाँ पूरा अवसर था-और जीसस ने उस ओर संकेत भी किया था। लेकिन पोंटियस पाइलेट चूक गया।
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जागे हुए लोगों की सिखावन से बुद्धि हमेशा चूक जाएगी, क्योंकि बुद्धि प्रत्यक्ष मार्ग में विश्वास करती है और तुम इस तरह प्रत्यक्ष रास्ते से सत्य पर चोट नहीं कर सकते। यह बहुत सूक्ष्म और नाजुक चीज़ हैं, जितना संभव हो सकता है यह उससे भी अधिक नाजुक है, तुम्हें बहुत सावधानी से गतिशील होना होगा और तुम्हें बहुत अप्रत्यक्ष तरीके से गतिशील होना होगा। तुम्हें उसका अनुभव करना होगा- वह कभी भी बुद्धि के द्वारा न आकर, हृदय के द्वारा आती है। शिक्षा, बुद्धि के द्वारा आती है और सिखावन हृदय के द्वारा घटित होती है..
और फूलों की बरसात हुई ~ प्रवचन 11
सद्गुरू ओशो

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