बुधवार, 4 जनवरी 2023

= १८५ =


 
🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*मुझ ही मैं मेरा धणी, पड़दा खोलि दिखाइ ।*
*आत्म सौं परमात्मा, प्रकट आण मिलाइ ॥*
*भरि भरि प्याला, प्रेम रस, अपणे हाथ पिलाइ ।*
*सतगुरु के सदिकै किया, दादू बलि बलि जाइ ॥*
=================
साभार : @Subhash Jain
.
दादू देखु दयाल की,गुरु दिखाइ बाट।
ताला कूंची लाइ करे,खोले सबै कपाट।।
"तलाशो-जुस्तजू की सरहदें अब खत्म होती हैं
खुदा मुझको नज़र आने लगा इंसाने-कामिल में'।
.
अगर तुम्हें एक आदमी की पूर्णता में भी परमात्मा नजर आने लगे तो खोज समाप्त हो गई। अगर तुम्हें मुझ में भी नजर आने लगे तो बात समाप्त हो गई। फिर मैं खिड़की बन जाऊंगा। तुम फिर मेरे पार देखने में समर्थ हो जाओगे। 
.
नहीं, मैं तुमसे कहता हूं, तुम्हें मुझ में भी नजर न आया होगा। तुमने मान लिया होगा। तुमने स्वीकार कर लिया होगा। नजर न आया होगा। तुम्हारे भीतर अब भी कहीं संदेह खड़ा होगा। वहीं संदेह तुम्हारी आंख पर परदा बना रहेगा।
.
अगर तुम्हें एक में नजर आ गया, तो बात खत्म हो गई, फिर सब में नजर आने लगेगा। यह तो ऐसे ही है, जिसने सागर का एक चुल्लू पानी चख लिया, उसे पता चल गया कि सारा सागर खारा है। तुमने अगर मुझ में परमात्मा चख लिया तो तुमने सारे परमात्मा के सागर को चख लिया। फिर असंभव है। 
.
यह तो कसौटी है, अगर तुम्हें एक में नजर आया, वह भी तुमने मान लिया होगा, भीतर संदेह को दबा दिया होगा; लेकिन भीतर तुम्हारी बुद्धि कहे जा रही होगी--परमात्मा, भगवान, भरोसा नहीं आता ! तो फिर से गौर से देखो। मुझ में उतना देखने का सवाल नहीं है; असली परदा तुम्हारे भीतर है। 
.
तुम्हारी आंख पर संदेह का परदा है, तो वृक्षों में नहीं दिखाई पड़ता, चांदत्तारों में नहीं दिखाई पड़ता। सब तरफ वही मौजूद है, पत्ती-पत्ती में! उसके बिना जीवन हो नहीं सकता। जीवन उसका ही नाम है। या जीवन परमात्मा का नाम है। तुम "परमात्मा' शब्द छोड़ दो तो भी हर्जा नहीं, "जीवन' शब्द याद रखो। जहां जीवन दिखाई पड़े वहीं झुको।
.
जीवन को जरा देखो ! एक बीज से फूटती हुई कोंपलों को देखो ! बहते हुए झरने को देखो ! रात के सन्नाटे में, चांदत्तारों को देखो ! किसी बच्चे की आंख में झांको ! सब तरफ वही है ! परदा तुम्हारे भीतर है। परदा तुम हो।
"तू-ही तू हो, जिस तरफ देखें उठा कर आंख हम
तेरे जल्वे के सिवा पेशे-नज़र कुछ भी न हो'।
.
मगर यह परमात्मा के हाथ में नहीं है। अगर यह उसके हाथ में होता तो परदा कभी का उठा दिया गया होता। यह तुम्हारे हाथ में है। यह परदा तुम हो। और तुम जब तक न उठाओ अपना परदा तब तक तुम्हें कहीं भी दिखाई न पड़ेगा।
.
और मैं तुमसे कहता हूं, एक जगह दिखाई पड़ जाए तो सब जगह दिखाई पड़ गया। जिसे मंदिर में दिखा उसको मस्जिद में भी दिख गया। देखने की आंख आ गई, बात समाप्त हो गई। जिसको एक दिये में रोशनी दिख गई, क्या उसे सूरज की रोशनी न दिखेगी ?
.
लेकिन अंधा आदमी ! वह कहता है, दीये में तो दिखती है, लेकिन सूरज की नहीं दिखती। तो हम क्या कहेंगे ? हम कहेंगे, तूने दीये की मान ली। तूने अपने को समझा-बुझा लिया। तू फिर से देख। इस धोखे में मत पड़।
.
तो मैं तुमसे कहता हूं, फिर से मेरी आंखों में देखो, फिर से मेरे शून्य में झांको ! अगर संदेह के बिना देखा, अगर भरोसे से देखा, तो एक झलक काफी है। फिर उस झलक के सहारे तुम सब जगह खोज लोगे। फिर तुम्हारे हाथ में कीमिया पड़ गई, तुम्हारे हाथ में कुंजी आ गई।
.
इतना ही अर्थ है गुरु का कि उससे तुम्हें पहली झलक मिल जो कि कुंजी हाथ आ जाए, फिर सब ताले उस कुंजी से खुज जाते हैं।
ओशो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें