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*समाचार सत पीव का, कोइ साधु कहेगा आइ ।*
*दादू शीतल आत्मा, सुख में रहे समाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*चैतन-श्याम सु नाम भयो जग,*
*ख्यात महंत जु देह धरी है।*
*गौड़ जितो नर भक्ति न जानत,*
*प्रेम समुद्र बुड़ाय हरी है ॥*
*संत शिरोमणि होत भये सब,*
*तारन को जग बात खरी है।*
*कोटि अजामिल वारत दुष्टन,*
*भक्ति निमग्न करे भु भरी है ॥३१४॥*
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श्रीकृष्णजी महन्त देह धारण करके "श्रीकृष्ण चैतन्य" नाम से जगत में प्रकट हुये हैं।
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जितना गौड़ बंगाल देश था, उसमें कोई भी हरि भक्ति को नहीं जानता था। वहाँ के सभी लोगों को आपने "हरि हरि" नाम जपने का उपदेश करके प्रभु-प्रेम समुद्र में डुबा दिया था।
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आपके शिष्य प्रशिष्य तथा शिरोमणि संत हुए हैं। और सभी जगत् के प्राणियों का उद्धार करने वाले हुए हैं, यह बात सत्य है।
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जिनकी दुष्टता पर कोटिन अजामिल के समान पापियों को निछावर कर दिया जाय, ऐसे दुष्टों को भी प्रभु प्रेम में निमग्न करके आपने भूमि में भगवद्भक्ति भर दी थी अर्थात् पृथ्वी पर भक्ति का अत्यधिक प्रचार किया था।
(क्रमशः)
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