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*दादू हमको सुख भया, साध शब्द गुरु ज्ञान ।*
*सुधि बुधि सोधी समझकर, पाया पद निर्वाण ॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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गुरि म्हारै अैसा गुण किया ।
विष षातां अंम्रित ले दिया ॥टेक॥
षलि षातां मिश्री ले दीई ।
साहिब जांणि इती उनी कीई ॥
ऊजड़ जातां बाट बताई ।
सैंन दिई जिव लियौ बुलाई ॥
कूप परत जिव लीयौ राषि ।
दया करी दीयौ नहिं नाषि ॥
गुर दादू की बलि बलि जांउं ।
टीला जिहिं दीयौ हरि नांउं ॥२७॥
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मेरे गुरुमहाराज ने मेरे ऊपर ऐसा उपकार किया है कि जिसके कारण मैं विष का पान करने के स्थान पर अमृत का पान करने लगा हूँ क्योंकि उन्होंने विषय-भोग रूपी विष को छुड़ाकर रामनाम रूपी अमृत का उपदेश दिया है ।
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पहले में खल खा रहा था किन्तु उन्होंने मुझे खाने को मिश्री दी । मैं साहिब रूप परात्पर-परब्रह्म को जान गया, उन्होंने इतना उपकार मेरे ऊपर किया । मैं ऊजड़=कष्टदाई अराजमार्ग पर जा रहा था किन्तु उन्होंने मुझे राजमार्ग बता दिया । मुझे राजमार्ग के संकेत बताकर मेरे विषयों में भटकते मन को राजमार्ग रूपी रामनाम स्मरण करने के मार्ग पर लगा दिया ।
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मेरा मन कुवे में पड़ने जा रहा था किन्तु गुरुमहाराज ने मुझे गिरने से बचा लिया । मेरे ऊपर दया करके मुझे अपनी शरण में रख लिया । मुझे उन्होंने डूबने को ढकेला नहीं । टीला गुरुमहाराज दादूजी के चरणों में बार-बार न्यौछावर होता है जिन्होंने मुझको परात्पर-परब्रहम-हरि का निर्मल नाम प्रदान किया ॥२७॥
(क्रमशः)
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