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*दादू सोई सेवक राम का, जिसे न दूजी चिंत ।*
*दूजा को भावै नहीं, एक पियारा मिंत ॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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क्यूंन्हैं१ नींदौ म्हांनैं रे ।
थांकौ कीयौ थांनैं रे ॥टेक॥
साहिब सूं मन लायौ रे ।
टूकौ पांणीं षायौ रे ॥
छाजन रांम षंदायौ रे ।
सो म्हे अंगि लगायौ रे ॥
कुल क्रंम कोइ न२ कमायौ रे ।
कोई षोसि न षायौ रे ॥
न्यंदक३ कहै अबिचारी रे ।
टीला मांथैं मारी रे ॥२९॥
(पाठान्तर : १. क्यांन्हैं, २. ‘न’ नहीं है, ३. निन्दक)
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प्रतिपक्षियों एवं निन्दकों से कहते हैं, आप हमारी निन्दा क्यों करते हो । आपका कर्म आपके साथ है और हमारा कर्म हमारे साथ है । आप यदि कहते हो कि आपका मार्ग ही श्रेष्ठ तथा कल्याणकारी है तो वह आपको मुबारक हो । इसके विपरीत यदि हमारा मत गर्हित और अकल्याणकारी है तो वह हमारे लिए है । आप क्यों व्यर्थ ही दुखी हो रहे हो । कृपा करके हमारी निन्दा मत करो ॥टेक॥
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हमने अपना मन परात्पर-परमात्मा में संयोजित कर रखा है । हमको जैसा रुखा-सूखा रोटी का टुकड़ा मिलता है वैसा ही खाकर व पानी पीकर भगवद्भजन करते हैं । रामजी जैसा वस्त्र भेजता है हम उसी को उसका प्रसाद समझकर अंग पर धारण कर लेते हैं ।
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हमने वर्णकुलानुसार कोई भी कर्म अथवा कर्मों का संपादन नहीं किया है किन्तु लक्ष्य करने की बात यह भी है कि हमने किसी के माल को छीनकर खाया भी नहीं है । हम तो उसी सामान को वापरते हैं जो हमको सहज में अनायास ही मिल जाता है । हे निन्दकों ! आप अविचारित बातें कहते हैं । इसीलिए मैं टीला आपकी सिद्धान्तहीन बातों को आपके ही माथे मारता हूँ ॥२९॥
(क्रमशः)
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