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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२८. काल कौ अंग ७३/७६*
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जगजीवन सूछीम करै, जैसा सूछीम बाल ।
तैसे ही आकार रहै, तो पुनि ग्रासै काल ॥७३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि साधक जीव को बाल जितना ही पतला ही कर सूक्ष्म कर ले तभी सुरक्षित है अन्यथा काल ग्रसेगा ही ।
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रांम भगति बिन जीव कूं, देखत ग्रासै काल ।
कहि जगजीवन रांम रटि, तजै न माया जाल ॥७४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम जी की भक्ति के बिना जीव को देखते ही काल ग्रसित कर लेता है । संत कहते हैं कि माया जाल त्याग कर राम स्मरण करें ।
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कहि जगजीवन काल हरि, बाड़ी१ बेगा आइ ।
काचा पाका ना गिणैं, मन माया फल खाइ ॥७५॥
{१. बाड़ी=वाटिका(फलों का उद्यान)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि काल हरा भरा बाग देख कर जैसे उसे नष्ट करने जीव आजाते हैं वैसे ही काल भी आजाता है । फिर वह कच्चा पक्का कुछ नहीं देखता मन के माया रुपी सभी फल खा जाता है ।
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औरूं* वो दिन आवसी, औरूं बोल हरि सत्ति ।
कहि जगजीवन बूझ सी, जब दिवलै घट सी बत्ति* ॥७६॥
(*-*. पुनः वह दिन आयगा, जब तेरी मृत्यु होगी, और तेरे पीछे लोग ‘रामनाम सत्त है’- बोलते हुए चलेंगे; क्योंकि तैल और बाती बिना दीपक नहीं जला करता, बुझ ही जाता है ॥७६॥)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जैसै दीपक से तेल समाप्त हो जाने पर वह बुझ जाता ऐसे ही जीव से जब सत्यस्वरूप आत्म निकल जाता है तब लोग उसके पीछे भी फिर राम का नाम ही सत्य कहते हुये चलते हैं ।
(क्रमशः)
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