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*दादू काया कारवीं, देखत ही चल जाइ ।*
*जब लग श्वास शरीर में, राम नाम ल्यौ लाइ ॥*
*दादू काया कारवीं, मोहि भरोसा नांहि ।*
*आसन कुंजर शिर छत्र, विनश जाहिं क्षण मांहि ॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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म्हारौ रे यहु म्हारौ रे ।
कैंता ल्यावौ थारौ रे ॥टेक॥
नागौं आवै नागौ जाई ।
ताथैं साहिब सूं ल्यौ लाई ॥
चलतां कछू न आवै साथि ।
ताथैं दीजै अपणैं हाथि ॥
लेषौ चोषौ काहै करै ।
तूं तौ बात कहत ही मरै ॥
टीला मूरिष चेते नांहिं ।
यूंही१ जनम गवावै कांइ ॥२६॥
(पाठान्तर : १. यौंही)
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मूर्ख प्राणी ‘यह मेरा है’, ‘यह मेरा है’ ही कहता रहता है किन्तु बताओ, आखिर तूं यह तेरा कहाँ से लाया है ॥टेक॥
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तू नंगा ही तो आता है और नंगा ही जाता है । तेरा कुछ भी नहीं है । कुछ भी था नहीं और कुछ भी रहेगा नहीं । तेरा अपना कुछ है तो वह मात्र और मात्र रामजी है । अतः उसी में अपनी लय=वृत्ति को संस्थापित कर । जो भी धन-सम्पत्ति, माल-खजाना तेरे पास है वह मरते समय कुछ भी साथ नहीं जाएगा । अतः उसमें से जितना अपने हाथ से दान कर सकता है उतना कर दे ।
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क्यों इसका हिसाब-किताब करता है । अरे ! तू तो बात कहते-कहते ही मर जाएगा । टीला कहता है, अरे ! मूर्ख ! सावधान क्यों नहीं होता है । क्यों मनुष्य जैसे अमूल्य जन्म को व्यर्थ ही गँवाता है ॥२६॥
(क्रमशः)
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