🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*अति गति आतुर मिलन को,*
*जैसे जल बिन मीन ।*
*सो देखे दीदार को, दादू आतम लीन ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विरह का अंग)*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
*(५)उपाय-व्याकुलता । त्याग ।*
.
"मैं कहता हूँ, उपाय है क्यों नहीं ? उनकी शरण में जाओ और व्याकुल होकर प्रार्थना करो, ताकि अनुकूल वायु चलने लगे, जिससे शुभ योग आ जायँ । व्याकुल होकर पुकारोगे तो वे अवश्य सुनेंगे ।
.
"एक के लड़के का अब-तब हो रहा था । वह आदमी व्याकुल होकर इधर-उधर उपाय पूछता फिरता था । एक ने कहा, 'तुम अगर एक उपाय कर सको तो लड़का अच्छा हो जायेगा । अगर स्वाति नक्षत्र का पानी मुर्दे की खोपड़ी पर गिरे और उसी में रुक जाय, फिर अगर एक मेंढक उस पानी को पीने के लिए बढ़े और साँप उसे खदेड़े, खदेड़कर पकड़ते समय मेंढक उछलकर उस खोपड़ी को पार कर जाय और साँप का विष उसी खोपड़ी में गिर जाय, और वह विषैला पानी अगर रोगी को थोड़ासा पिला सको, तो वह अच्छा हो सकता है ।'
.
वह आदमी उसी समय स्वाति नक्षत्र में उस दवा की तलाश के लिए निकला । उसी समय पानी बरसना भी शुरू हो गया । तब वह व्याकुल होकर ईश्वर से कहने लगा, 'भगवन्, अब मुर्दे की खोपड़ी भी कहीं से ला दो ।' खोजते हुए उसे मुर्दे की खोपड़ी भी मिल गयी । उसमें स्वाति नक्षत्र का पानी भी पड़ा हुआ था ।
.
तब वह प्रार्थना करके कहने लगा, 'जय हो तुम्हारी भगवन्, अब और जो कुछ रह गया है वह भी सब जुटा दो - मेंढक और साँप ।' उसकी जैसी व्याकुलता थी, वैसी ही शीघ्रता से सब सामान इकट्ठे होते गये । देखते ही देखते एक साँप मेंढक का पीछा करते हुए आने लगा । और काटते समय उसका विष भी उसी खोपड़ी में गिर गया ।
.
"ईश्वर की शरण में जाकर, उन्हें व्याकुल होकर पुकारने पर वे उस पुकार पर अवश्य ही ध्यान देंगे, - सब सुयोग वे स्वयं जुटा देंगे ।"
कप्तान - कैसा सुन्दर दृष्टान्त है ।
.
श्रीरामकृष्ण - हाँ, वे स्वयं सब सुयोग जुटा देते हैं । कभी ऐसा भी होता है कि विवाह नहीं हुआ, सब मन ईश्वर पर चला गया । कभी यह होता है कि भाई रोजगार करते हैं, या एक लड़का तैयार हो जाता है, तो फिर उस व्यक्ति को स्वयं संसार का काम नहीं सम्हालना पड़ता, तब वह अनायास ही सोलहों आना मन ईश्वर को समर्पित कर सकता है ।
.
परन्तु बात यह है कि कामिनी और कांचन का त्याग हुए बिना कहीं कुछ नहीं होता । त्याग होने पर ही अज्ञान और अविद्या का नाश होता है । आतशी शीशे पर सूर्य की किरणों के पड़ने पर कितनी चीजें जल जाती है, परन्तु कमरे के भीतर छाया है, वहाँ आतशी शीशे के ले जाने पर यह बात नहीं होती । घर छोड़कर बाहर निकलकर खड़े होना चाहिए ।
.
"परन्तु ज्ञान-लाभ के बाद कोई कोई संसार में रहते भी हैं । वे घर और बाहर दोनों देखते हैं । ज्ञान का प्रकाश संसार पर पड़ता है, इसीलिए वे भला-बुरा, नित्य-अनित्य, सब उसके प्रकाश में देख सकते हैं ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें