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*जो कुछ बेद कुरान थैं, अगम अगोचर बात ।*
*सो अनुभै साचा कहै, यहु दादू अकह कहात ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*इन्दव-*
*रूप, सनातन की पद्य टीका*
*पांच तुकां१ निरवेद२ निरूपण,*
*जान कर्यो मन मांहि डरे हैं।*
*एक रही तुक मांझ निरन्तर,*
*लाख कवित्त अरथ्थ धरे हैं।*
*श्याम प्रिया रस बात कही बड़,*
*जीव३ सु नाथ४ छपैहि करे हैं।*
*है अनुराग कहा बरनूं गति५,*
*जासु दया करि प्रेम भरे हैं ॥३१५॥*
नाभाजी रूप और सनातन जी का वैराग्य२ अपने छप्पय के पाँच पादों१ तक वर्णन करते गये। फिर छप्पय का एक ही पाद शेष जानकर उनको भय हुआ कि- मैने इनके प्रेम का तो वर्णन किया ही नहीं।
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तब एक बचे हुये पाद में ही लाखों कवित्तों का अर्थ भर दिया। श्रीराधाकृष्ण रस की महान् कथा आपने कही है।
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इससे राधाकृष्ण भक्ति रस के आचार्य रूप सनातन हैं। इस आचार्यता का परिचय जीवगोस्वामी३ और नाथभट्ट४ के छप्पय में वाणी का चमत्कार दिखाते हुये कहा है कि- "रूप सनातन की भक्ति है, सोई जल है, वही जल जीव गोस्वामी रूप सरोवर से भरा है।" नाथ भट्ट के छप्पय में कहा- "रूप सनातन ने जो कहा है, सो नाथ भट्ट ने अपने हृदय में संचित किया है।" आप बड़े ही अनुरागी थे।
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इनके अनुराग की दशा५ मैं क्या वर्णन करूँ। जिनके ऊपर आपने दया करी थी, उनके प्रभु-प्रेम की कथाओं से अनेक ग्रन्थ भरे हैं।
(क्रमशः)
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