गुरुवार, 2 मार्च 2023

*२८. काल कौ अंग ८९/९२*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
.
*२८. काल कौ अंग ८९/९२*
.
मरै मांहिली४ व्यथा सूं, जीवै हरि जस गाइ ।
कहि जगजीवन रांमजी, तुम गति लखी न जाइ ॥८९॥
(४. मांहिली=आन्तरिक)
सतंजगजीवन जी कहते हैं कि जीव अपने अंतर की व्यथा से मरता है । और प्रभु महिमा जो गाता है वह ही उसका जीवन है । संत कहते हैं कि आपकी गति को कोइ नहीं जान सकता है ।
.
कथा, कीरतन, हरि भगति, हरिजन काटै काल ।
कहि जगजीवन विस्व विषै सुख५, मूरख जीव जंजाल ॥९०॥
(५. विस्व विषै सुख=सांसारिक कामभोग)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु की कथा, संकीर्तन, भक्ति, ये सब भक्तों के कष्ट निवारते हैं, काल से बचाते हैं । संत कहते हैं कि हे मूढ जीव संसार का विषय सुख तो एक जंजाल है जो तुझे मुक्त ही नहीं होने देगा ।
.
कहि जगजीवन मरि मंहि, अमर अमीरस चाखि ।
मरै न कबहूँ रांम दुहाई, हरि हरि बाणी भाखि ॥९१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जीव अहंकार मिटाकर ही मर पाता है तब ही वह आनंद स्वरूप अमीरस का आस्वादन कर पाता है । हरि स्मरण करते हुये जीव अमर होता है ।
.
काम क्रोध अहंकार तजि, संसै साल बिनास ।
विसरै रांम ओ ही६ मरै, सु कहि जगजीवनदास ॥९२॥
(६. ओ ही=वही)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि काम क्रोध अहंकार त्यागने से संशय, दुःख व विनाश से बचते हैं । जो राम स्मरण भूलते हैं वे ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें