शुक्रवार, 3 मार्च 2023

टीला न्यंदक भाई रे

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*दादू निंदक बपुरा जनि मरै, पर उपकारी सोइ ।*
*हम को करता ऊजला, आपण मैला होइ ॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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नींदौ रे भाइ नींदौ रे । 
अरघ जोनि में हींदौ१ रे ॥टेक॥
साधां नैं र संतावै२ रे । 
सो कियौ आपणौं पावै रे ॥
न्यंद्या३ भलौ न होई रे । 
ताथैं करौ न कोई रे ॥
न्यंदक४ कूदै नाचै रे । 
पाछैं घरि घरि जाचै रे ॥
टीला न्यंदक५ भाई रे । 
सगळा दुष ले जाई रे ॥३०॥
(पाठान्तर : १. हींडौ, २. सतावै, ३. निंद्या, ४. निन्दक, ५. निन्दक)
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निन्दक निन्दा करते-करते जब रुके ही नहीं, तब टीलाजी ने उनसे कहा, हे भाई ! निन्दा करो, खूब निन्दा करो, पानी पी-पीकर निन्दा करो । हमारा क्या बिगाड़ोगे ? कुछ नहीं । निन्दा के परिणामस्वरूप आप ही निम्न योनियों में हींडते=झूलते=भ्रमते फिरोगे । ॥टेक॥
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जो सन्तों को सताता=दुख देता है, वह अपने किए का स्वयं ही फल पाता है । हे भाई ! निन्दा करना अच्छा काम नहीं है । अतः इस निन्दा कर्म को कोई भी जाने अथवा अनजाने में मत करो ।
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पहले तो निन्दक खूब नचाता-कूदता=अपने निन्दाकर्म को करके आह्लादित होता है किन्तु निन्दाकर्मजन्य परिणाम के प्राप्त हो जाने पर धन-सम्पत्ति गँवाकर घर-घर माँगता फिरता है । निन्दक वस्तुतः भाई के बराबर है जो निन्दा करके निंद्य के सारे पापों को अपने सिर पर ले लेता है ॥३०॥
(क्रमशः)

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