सोमवार, 6 मार्च 2023

*रथ-यात्रा के दिन बलराम के मकान में*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू आनंद सदा अडोल सौं, राम सनेही साध ।*
*प्रेमी प्रीतम को मिले, यहु सुख अगम अगाध ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधु का अंग)*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
*परिच्छेद ११७.रथ-यात्रा के दिन बलराम के मकान में*
*(१)पूर्ण, छोटे नरेन्द्र, गोपाल की माँ*
.
श्रीरामकृष्ण बलराम के बैठकखाने में भक्तों के साथ बैठे हुए हैं । आज आषाढ़ को शुक्ला प्रतिपदा है, सोमवार, जुलाई १८८५, सबेरे ९ बजे का समय होगा ।
.
कल रथ-यात्रा है । रथ-यात्रा के उपलक्ष्य में बलराम ने श्रीरामकृष्ण को आमन्त्रित किया है । उनके घर में श्रीजगन्नाथजी की नित्य सेवा हुआ करती है । एक छोटासा रथ भी है । रथ-यात्रा के दिन रथ बाहर के बरामदे में चलाया जायेगा ।
.
श्रीरामकृष्ण मास्टर के साथ बातचीत कर रहे हैं । पास ही नारायण, तेजचन्द्र तथा अन्य दूसरे भक्त भी हैं । पूर्ण के सम्बन्ध में बातचीत हो रही हैं । पूर्ण की उम्र पन्द्रह साल की होगी । श्रीरामकृष्ण उन्हें देखने के लिए अत्यन्त उत्सुक हैं ।
.
श्रीरामकृष्ण (मास्टर से) - अच्छा, वह किस रास्ते से आकर मिलेगा ? द्विज और पूर्ण के मिला देने का भार तुम्हीं पर रहा ।
“एक ही प्रकृति तथा एक ही उम्र के आदमियों को मैं मिला दिया करता हूँ । इसका एक विशेष अर्थ है । इससे दोनों की उन्नति होती है । पूर्ण में कैसा अनुराग है, तुमने देखा ?"
.
मास्टर - जी हाँ, मैं ट्राम पर जा रहा था, छत से मुझे देखकर दौड़ा हुआ आया और व्याकुल होकर वहीं से उसने नमस्कार किया ।
श्रीरामकृष्ण (अश्रुपूर्ण नेत्रों से) – अहाहा ! मतलब यह कि तुमने परमार्थ-लाभ के लिए उसका मेरे साथ संयोग करा दिया है । ईश्वर के लिए व्याकुल हुए बिना ऐसा नहीं होता ।
.
"नरेन्द्र, छोटा नरेन्द्र और पूर्ण, इन तीनों की सत्ता पुरुष-सत्ता है । भवनाथ में यह बात नहीं - उसके स्वभाव में जनानापन है, प्रकृति भाव है ।
"पूर्ण की जैसी अवस्था है, इससे बहुत सम्भव है, उसकी देह का नाश बहुत जल्द हो जाय - इस विचार से कि ईश्वर तो मिल गये, अब किसलिए यहाँ रहा जाय ? – या यह भी सम्भव है कि थोड़े ही दिनों में वह बड़े जोरों की बाढ़ बढ़ेगा ।
.
"उसका है देव-स्वभाव - देवता की प्रकृति । इससे लोकभय कम रहता है । अगर गले में माला डाल दी जाय या देह में चन्दन लगा दिया जाय अथवा धूप-धूना जलाया आय, तो उस प्रकृतिवाले को समाधि हो जाती है । - उसे जान पड़ता है, हृदय में नारायण हैं - वे ही देहधारण करके आये हुए हैं । मुझे इसका ज्ञान हो गया है ।
.
"दक्षिणेश्वर में पहले-पहल जब मेरी यह अवस्था हुई, तब कुछ दिनों के बाद एक भले ब्राह्मण-घर की लड़की आयी थी । वह बड़ी सुलक्षणी थी । ज्योंही उसके गले में माला डाली और धूप-धूना दिया, त्योंही वह समाधिमग्न हो गयी । कुछ देर बाद उसे आनन्द मिलने लगा - और आँखों से अश्रुधारा बह चली । तब मैंने प्रणाम करके पूछा, 'माँ, क्या मुझे भी लाभ होगा ?' उसने कहा, 'हाँ ।'
.
"पूर्ण को एक बार और देखने की इच्छा है । परन्तु देखने की सुविधा कहाँ ?
“जान पड़ता है कला है । कैसा आश्चर्यजनक ! केवल अंश नहीं, कला है !
"कितना चतुर है ! - सुना है, लिखने-पढ़ने में भी बड़ा तेज है । - तब तो मेरा अन्दाजा पूरा उतर गया ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें