सोमवार, 6 मार्च 2023

*श्री रज्जबवाणी पद ~ १२२*

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*काल झाल में जग जलै, भाज न निकसै कोइ ।*
*दादू शरणैं साच के, अभय अमर पद होइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग केदार ८(संध्या ६ से ९ रात्रि)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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१२२ पंजाबी । त्रिताल
मन यहु मान मुग्ध१ अचेत२,
समय शठ हठ छोड़ मूरख, कहत हूं करि हेत ॥टेक॥
देह झूठ सु परत३ पल में, लई४ कै५ जम लेत ।
काल कर करवाल६ काटे, देख ले शिर सेत ॥१॥
शीतकोट७ रु स्वप्न संपति, सु हु यहु संकेत ।
छिनक में सब छाड़ि जे हैं, मारि मूढ हि बेत ॥२॥
मात पितु सुत सखा बांधव, सकल कालर८ खेत ।
कर कृषि९ तू पर्यो रीतो, खोल देख हु नेत१० ॥३॥
त्याग तन धन गेह गाफिल, सीख सदगुरु देत ।
रज्जब जम जोर ले है, देसि११ मुहड़े१२ रेत ॥४॥३॥
✦ अरे असावधान२ ! मूर्ख१ मन ! यह शिक्षा मान और हे शठ ! विचार करके अपने मिथ्या हठ को छोड़ ।
✦ अरे मूर्ख ! मैं तेरे से प्रेम करके ही कहता हूँ । यह शरीर मिथ्या है और एक क्षण में ही पड़३ जाता है । इस देह को यम ने कई५ बार४ लिया है और लेगा अर्थात मारा है और मारेगा । काल हाथ में तलवार६ लेकर काटेगा, देखले शिर मे श्वेत बाल आ गये हैं, यह काल आने का संकेत है ।
✦ यह तेरी धन-संपति, गंधर्व७-नगर और स्वप्न की सम्पति के समान है । यह संकेत रूप चेतावनी भली भांति सुनले । मूर्ख ! तू एक क्षण भर में सब छोड़ जायेगा । यम दूत तेरे बेत मारते हुए तुझे ले जायेंगे ।
✦ माता पिता पुत्र सखा और बांधव ये सभी ऊषर८ भूमि के खेत के समान हैं, जैसे ऊषर खेत में खेती९ करने पर बीज भी नष्ट हो जाता है और बोने वाला खाली हाथ ही रहता है, वैसे ही तू भी अपने नेत्र१० खोलकर देख ले, परिवार के राग में फंसकर खाली ही रहेगा ।
✦ अरे असावधान ! सदगुरु शिक्षा देते हैं कि - शरीर धन और घर आदि के राग को त्याग, नहीं त्यागने से यमराज दूत तुझे बल पूर्वक पकड़ लेंगे और तेरे मुख१२ पर धूलि डालेंगे११ ।
(क्रमशः)

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