शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

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*दादू बूड़े ज्ञान सब, चतुराई जल जाइ ।*
*अंजन मंजन फूंक दे, रहै राम ल्यौ लाइ ॥*
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*साभार : @Subhash Jain*
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गुरजिएफ न्यूयार्क में था। और बड़ी प्रगाढ़ सफलता गुरजिएफ के विचारों को मिल रही थी। उसके एक शिष्य ने लिखा है कि हम गुरजिएफ को कभी न समझ पाए कि वह आदमी कैसा था। क्योंकि जब कोई चीज सफल होने के पूरे करीब पहुंच जाए, तभी वह कुछ ऐसा करता था कि सब चीजें असफल हो जातीं। ठीक ऐन मौके पर वह कभी नहीं चूकता था चीजों को बिगाड़ने में। और बनाने के लिए इतना श्रम करता था जिसका कोई हिसाब नहीं।
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उसने बहुत से साधना-आश्रम निर्मित किए। एक साधना-आश्रम पेरिस के पास निर्मित किया। वर्षों मेहनत की, अथक श्रम उठाया, सैकड़ों लोगों को साधना के लिए तैयार किया। और फिर एक दिन सब विसर्जित कर दिया।
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जिन्होंने इतनी मेहनत उठाई थी, उन्होंने कहा, तुम पागल मालूम पड़ते हो, क्योंकि अब तो मौका आया कि अब कुछ हो सकता है। इसी दिन के लिए तो हमने वर्षों तक मेहनत की थी। तो गुरजिएफ ने कहा कि हम भी इसी दिन के लिए वर्षों तक मेहनत किए थे। अब हम विसर्जित करेंगे–इसी विसर्जन के लिए। 
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न्यूयार्क में फिर दुबारा एक बड़ी व्यवस्था और एक बड़ी संस्था निर्मित होने के करीब पहुंचने को आई। वर्षों मेहनत की शिष्यों ने और गुरजिएफ ने। और एक दिन सारी चीज उखाड़ कर वह चलता बना। निकटतम साथी उसे छोड़ते चले गए। क्योंकि धीरे-धीरे लोगों को अनुभव हुआ कि यह आदमी निपट पागल है। सफलता का क्षण जब करीब होता है, हाथ के करीब होता है कि फल हाथ में आ जाए, तब यह आदमी पीठ मोड़ लेता है। और जब फल आकाश की तरह दूर होता है, तब यह इतना श्रम करता है जिसका कोई हिसाब नहीं। निश्चित ही, यह पागल आदमी का लक्षण है।
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लेकिन लाओत्से इस पागल आदमी को ज्ञानी कहता है। लाओत्से कहता है कि जब सफलता हाथ में आ जाए, तब तुम चुपचाप ओझल हो जाना। इसे अगर भीतर से समझें, तो जो ट्रांसफार्मेशन, जो क्रांति घटित होगी, वह खयाल में आ जाएगी। इसे कभी प्रयोग करके देखें। 
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सफलता तो बहुत दूर की बात है, अगर रास्ते पर कोई आदमी चलता हो और उसका छाता गिर जाए, तो हम उसे उठा कर खड़े रह कर दो क्षण प्रतीक्षा करते हैं कि वह धन्यवाद दे। और अगर वह धन्यवाद न दे, तो चित्त को बड़ी निराशा और बड़ी उदासी होती है। एक धन्यवाद भी हम छोड़ कर नहीं हट सकते हैं। एक धन्यवाद भी हम ले लेना चाहते हैं।
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तो लाओत्से जो कह रहा है कि जब काम बिलकुल सफल हो जाए और जीवन सिद्धि के करीब पहुंच जाए और मंजिल सामने आ जाए, तब तुम पीठ मोड़ लेना और चुपचाप तिरोहित हो जाना। बड़े इंटिग्रेशन, बड़ी भीतर सघन आत्मा की जरूरत पड़ेगी। 
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वह जो सघनता है भीतर की, उस सघनता का जो परिणाम होता है, वह बहुत अलौकिक है। जो व्यक्ति मंजिल के पास पीठ मोड़ लेता है, मंजिल उसके पीछे चलनी शुरू हो जाती है। और जो व्यक्ति सफलता के बीच से ओझल हो जाता है, उसके लिए असफलता का जगत में नाम-निशान मिट जाता है। वह आदमी फिर असफल हो ही नहीं सकता।
ओशो

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