मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

निराकार का घर

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🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
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*दादू तज संसार सब, रहे निराला होइ ।*
*अविनाशी के आसरे, काल न लागे कोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विरह का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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श्रीरामकृष्ण - ईश्वर के रूप के दर्शन होते हैं । जब सब उपाधियाँ चली जाती हैं, विचार बन्द हो जाता है तब दर्शन होता है । तब मनुष्य निर्वाक् हो समाधि में लीन हो जाता है । थिएटर में जाकर, वहाँ बैठे हुए आदमी कितनी ही गप्पें सुनते-सुनाते रहते हैं । पर्दा उठा नहीं कि सब गप्पें बन्द हो जाती हैं । जो कुछ देखते हैं, उसी में मग्न हो जाते हैं ।
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"तुम्हें यह मैं गुह्य बात सुना रहा हूँ । पूर्ण और नरेन्द्र आदि को प्यार करता हूँ, इसका एक खास अर्थ है । जगन्नाथ को मधुरभाव में आकर भेंटने के लिए मैंने हाथ बढ़ाया नहीं कि गिरकर हाथ टूट गया । उसने समझा दिया - 'तुमने शरीर धारण किया है, इस समय नर-रूपों में ही सख्य, वात्सल्य आदि भावों को लेकर रहो ।'
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"रामलला पर जो जो भाव होते थे, वे ही अब पूर्णादि को देखकर होते हैं । रामलला को मैं नहलाता था, खिलाता था, सुलाता था, साथ लेकर घूमता था । रामलला के लिए बैठकर रोता था; इन सब लड़कों को लेकर ठीक वे ही बातें हो रही हैं । देखो न, निरंजन किसी में लिप्त नहीं है । खुद रुपया लगाकर गरीबों को दवाखाने ले जाया करता है ।
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विवाह की बात पर कहता है, 'बाप रे ! विशालाक्षी नदी का भँवर है ।’ उसे मैं देखता हूँ, एक ज्योति पर बैठा हुआ है ।
“पूर्ण साकार ईश्वर के राज्य का है । उसका जन्म विष्णु के अंश से है । आहा ! - कैसा अनुराग है !
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(मास्टर से) "देखा नहीं, वह तुम्हारी तरफ देखने लगा - जैसे गुरुभाई पर दृष्टि हो - जैसे कोई अपना सगा हो ? एक बार और मिलने के लिए कहा है । उसने कहा है, कप्तान के यहाँ भेंट होगी ।
"नरेन्द्र का स्थान बहुत ऊँचा है - निराकार का घर है । - पुरुष की सत्ता है । इतने भक्त आ रहे हैं, उसकी तरह एक भी नहीं है ।
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"एक एक बार मैं बैठकर हिसाब लगाता हूँ । - देखता हूँ - दूसरों में से कोई तो पद्मों में दस दल का है, कोई सोलह दल का, कोई सौ दल का, परन्तु नरेन्द्र सहस्र दल का है ।
"दूसरे लोग यदि लोटा, घड़ा आदि हैं तो नरेन्द्र खूब बड़ा मटका है ।
"गड़हियों और तालाबों में नरेन्द्र सरोवर है । - जैसे हालदार सरोवर ।
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"मछलियों में नरेन्द्र लाल आँखों की रोहू है तथा अन्य सब तरह-तरह की छोटी मछलियाँ हैं ।
"नरेन्द्र बहुत बड़ा आधार है - उसमें बहुतसी चीजें समा जाती हैं । बड़े छेदवाला बाँस है ।
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"नरेन्द्र किसी के वश नहीं है। वह आसक्ति और इन्द्रिय-सुख के वश नहीं है । नर-कबूतर है । नर-कबूतर की चोंच पकड़ने पर वह चोंच खींचकर छुड़ा लेता है, - मादा चुपचाप रह जाती है ।
"बेलघर के तारक को 'मृगाल' (एक प्रकार की मछली, चालाक और बड़ी) कह सकते हैं ।
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"नरेन्द्र पुरुष है, इसीलिए गाड़ी में दाहिनी और बैठता है । भवनाथ का जनाना भाव है, इसलिए उसे दूसरी ओर बैठाता हूँ ।
“नरेन्द्र सभा में रहता है तो मुझे भरोसा रहता है ।"
श्रीयुत महेन्द्र मुखर्जी आये और प्रणाम किया । दिन के आठ बजे होंगे । हरिपद, तुलसीराम भी क्रमशः आये और प्रणाम किया । बाबूराम को बुखार है । इसलिए वे नहीं आ सके ।
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श्रीरामकृष्ण (मास्टर से) - छोटा नरेन्द्र नहीं आया ? उसने सोचा होगा - वे चले गये । (मुखर्जी से) कितने आश्चर्य की बात है, वह (छोटा नरेन्द्र) बचपन में, स्कूल से लौटकर ईश्वर के लिए रोता था । (ईश्वर के लिए) रोना क्या सहज ही होता है ?
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फिर बुद्धि भी खूब है । बाँसों में बड़े छेदवाला बाँस है ।
"और सब मन मुझ पर रहता है । गिरीश घोष ने कहा, 'नवगोपाल के यहाँ जिस दिन कीर्तन हुआ था, उस दिन (छोटा नरेन्द्र) गया था, - परन्तु 'वे कहाँ' कहकर बेहोश हो गया, लोग उसके ऊपर से चले जाते थे !"
“उसे भय भी नहीं है कि घरवाले नाराज होंगे । दक्षिणेश्वर में लगातार तीन रात रहा था ।”
(क्रमशः)

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