शनिवार, 5 अगस्त 2023

*३९. बिनती कौ अंग १३/१६*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*३९. बिनती कौ अंग १३/१६*
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कहि जगजीवन रांमजी, दरसन दीजै आइ ।
तुम कों परसै आत्मां, रोम रोम सुख पाइ ॥१३॥
संतजगजीवन जी कते हैं कि आप दर्शन दीजिये आप को देखकर रोम रोम सुखी होता है ।
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कहि जगजीवन करतार को, जे कर मस्तिक होइ ।
तो जीये यों ही जांनिये, भई निवाजसि६ तोहि ॥१४॥
(६. निवाजसि=कृपा करोगे)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि सर्व समर्पण की अवस्था है । हम जब तक प्रभु जी आप कृपा करेंगे तब तक ही जीवित हैं ।
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कहि जगजीवन रांमजी, भला जीव का होइ ।
तिस घर मांही राखिये, दुःख न व्यापै कोइ ॥१५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जीव का भला उसे जब तक आप अपने मानस में रखोगे तब तक ही है । तब तक उसे कोइ दुख नहीं हो सकता है ।
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जे व्रत टालौं भजन हरि, तो मैं गुनही७ तोर ।
कहि जगजीवन रांमजी, बकसौ८ ओगण मोर ॥१६॥
(७. गुनही=अपराधी) (८. बकसौ=क्षमा करो)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु यदि मैं आपके भजन का व्रत या संकल्प छोड़ूं तो मैं आपका अपराधी हूँ प्रभु आप मेरे इस अवगुण को क्षमा करें ।
(क्रमशः)

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