रविवार, 10 सितंबर 2023

*३९. बिनती कौ अंग ५७/६०*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*३९. बिनती कौ अंग ५७/६०*
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हा हा नाथ ! अनाथ हूँ, करौ सनाथ सरीर ।
कहि जगजीवन परस हरि, प्यावौ अम्रित नीर ॥५७॥ 
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मेरी आर्त्त स्वर में विनती है कि मुझ अनाथ को शरण लेकर सनाथ कीजिये । आप मुझे स्पर्श कर मेरे मस्तक पर अपने हाथ धर मुझे अमृत जल पिलायें ।
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कहि जगजीवन रांमजी, अम्रित अमीरस नांम ।
क्रिपा तुम्हारी जन लहै, प्रेम ह्रिदै सब ठांम ॥५८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु आपका नाम अमृत सा अमरत्व देनेवाला है । आपकी कृपा पाकर जीव के हृदय में सर्वत्र प्रेम होता है ।
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हे क्रिपाल करता पुरुष, जुग जन राख न मांम९ ।
कहि जगजीवन जीव सब, सुखी कीजिये रांम ॥५९॥
(९. मांम=ममता)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे कृपालु कर्ता पुरुष है आप । इस जीव में ममता न रहे ऐसा कीजिये । संत कहते हैं कि आप । सब जीवों को सुखी कीजिये ।
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नांव१० सु भरणी रांमजी, बूड़त है बहु भार ।
कहि जगजीवन खेउ हरि, प्रीतम कीजै पार ॥६०॥
(१०. नाव=नौका)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि यह जीवन नौका बहुत विकारी भावों से भारी हो भव सागर में डूबती है । हे प्रियतम ! आप ही खैवैया बन कर भव से पार कीजिये ।
(क्रमशः)  

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