शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

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*दादू मेरा वैरी मैं मुवा, मुझे न मारै कोइ ।*
*मैं ही मुझको मारता, मैं मरजीवा होइ ॥*
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*साभार : @Subhash Jain*
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#बुद्ध ने अपना राजमहल छोड़ दिया, परिवार छोड़ दिया, सुंदर पत्नी छोड़ दी, प्यारा पुत्र छोड़ दिया। और जब किसी ने पूछा कि क्यों छोड़ रहे हैं तो उन्होंने कहा : 'जहां कुछ भी स्थाई नहीं है वहां रहने का क्या प्रयोजन ? बच्चा एक न एक दिन मर जाएगा।ʼ और बच्चे का जन्म उसी रात हुआ था जिस रात बुद्ध ने महल छोड़ा। उसके जन्म के कुछ घंटे ही हुए थे। बुद्ध उसे अंतिम बार देखने के लिए अपनी पत्नी के कमरे में गए।
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पत्नी की पीठ दरवाजे की तरफ थी और वह बच्चे को अपनी बांहों में लेकर सोई थी। बुद्ध ने अलविदा कहना चाहा,लेकिन वे झिझके। उन्होंने कहा : 'क्या प्रयोजन है ?' एक क्षण उनके मन में यह विचार कौंधा कि बच्चे के जन्म के कुछ घंटे ही हूए हैं, मैं उसे अंतिम बार देख तो लूं। लेकिन उन्होंने फिर कहा : 'क्या प्रयोजन है ? सब तो बदल रहा है। आज बच्चा पैदा हुआ है,कल वह मरेगा। एक दिन पहले वह नहीं था,अभी वह है,और एक दिन फिर नहीं हो जाएगा। तो क्या प्रयोजन है ? सब कुछ तो बदल रहा है।ʼ वे मुड़े और विदा हो गए।
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जब किसी ने पूछा कि आपने क्यों सब कुछ छोड़ दिया ?
बुद्ध ने कहा: 'मैं उसकी खोज में हूं जो कभी नहीं बदलता, जो शाश्वत है। यदि मैं परिवर्तनशील के साथ अटका रहूंगा तो निराशा ही हाथ आएगी। क्षणभंगुर से आसक्त होना मूढ़ता है; वह कभी ठहरने वाला नहीं है।
मैं मूढ़ बनूंगा और हताशा हाथ लगेगी। मैं तो उसकी खोज कर रहा हूं जो कभी नहीं बदलता,जो नित्य है। अगर कुछ शाश्वत है तो ही जीवन मैं अर्थ है,जीवन में मूल्य है। अन्यथा सब व्यर्थ है।ʼ बुद्ध की समस्त देशना का आधार परिवर्तन था।
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यह सूत्र सुंदर है। यह सूत्र कहता है : 'परिवर्तन के द्वारा परिवर्तन को विसर्जित करो। 'बुद्ध कभी दूसरा हिस्सा नहीं कहेंगे; यह दूसरा हिस्सा बुनियादी रूप से तंत्र से आया है...। बुद्ध इतना ही कहेंगे कि सब कुछ परिवर्तनशील है, इसे अनुभव करो और तब तुम्हें आसक्ति नहीं होगी। और जब आसक्ति नहीं रहेगी तो धीरे-धीरे अनित्य को छोड़ते-छोड़ते तुम अपने केंन्द्र पर पहुंच जाओगे, उस केंद्र पर आ जाओगे जो नित्य है,शाश्वत है। परिवर्तन को छोड़ते जाओ और तुम अपरिवर्तिन पर, केंद्र पर, चक्र के केंद्र पर पहुंच जाओगे।
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इसलिए बुद्ध ने चक्र को अपने धर्म का प्रतीक बनाया, क्योंकि चक्र चलता रहता है,लेकिन धुरी, जिसके सहारे चक्र चलता है, ठहरी रहती है, स्थाई है। तो संसार चक्र की भांति चलता रहता है,तुम्हारा व्यक्तित्व चक्र की भांति बदलता रहता है; और तुम्हारा अंतरस्थ तत्व अचल धुरी बना रहता है जिसके सहारे चक्र गति करता है। धुरी अचल रहती है। बुद्ध कहेंगे कि जीवन परिवर्तन है; वे सूत्र के पहले हिस्से से सहमत होंगे। लेकिन दूसरा हिस्सा तंत्र से आया है :
*परिवर्तन से परिवर्तन को विसर्जित करो।*
ओशो~तंत्र-सूत्र

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