गुरुवार, 28 सितंबर 2023

श्रीरामकृष्ण तथा मास्टर

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*दादू लीला राजा राम की, खेलैं सब ही संत ।*
*आपा पर एकै भया, छूटी सबै भरंत ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधू का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(३)श्रीरामकृष्ण तथा मास्टर*
डाक्टर से आने के लिए कहकर मास्टर लौटे । भोजन आदि करके दिन के तीन बजे वे श्रीरामकृष्ण से मिले और डाक्टर की कुल कथा कह सुनायी । कहा, 'डाक्टर ने आज बहुतसी बातें सुनायीं ।’
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श्रीरामकृष्ण - क्यों, क्या कहा ?
मास्टर - महाराज, कल वे यहाँ सुन गये थे कि आपने यह रोग डाक्टर का अहंकार बढ़ाने के लिए स्वयं ही पैदा किया है ।
श्रीरामकृष्ण - किसने कहा था ?
मास्टर - महिमा चक्रवर्ती ने ।
श्रीरामकृष्ण – फिर ?
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मास्टर - वह महिमा चक्रवर्ती को तमोगुणी ईश्वर कहने लगा । अब डाक्टर ने मान लिया है कि ईश्वर में तत्त्व, रज, तम तीनों गुण हैं । (श्रीरामकृष्णदेव का हास्य) फिर मुझसे उन्होंने कहा, 'आज रात को तीन बजे मेरी नींद उचट गयी और तभी से श्रीरामकृष्णदेव का चिन्तन कर रहा हूँ ।' जब मैं उनसे मिला था तब आठ बजे थे, और उन्होंने कहा, ‘अभी भी श्रीरामकृष्ण का मैं चिन्तन कर रहा हूँ ।’
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श्रीरामकृष्ण - देखो, तुम जानते हो, वह अंग्रेजी पढ़ा-लिखा है, उससे यह नहीं कहा जा सकता कि तुम मेरी चिन्ता करो । परन्तु अच्छा है, वह आप ही कर रहा है ।
मास्टर - फिर उन्होंने कहा, 'मैं उन्हें अवतार नहीं कहता, परन्तु मनुष्य समझकर उन पर मेरी सबसे अधिक भक्ति है ।'
श्रीरामकृष्ण - कुछ और बात हुई है ?
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मास्टर - मैंने पूछा, 'आज बीमारी के लिए क्या बन्दोबस्त किया जाय ?' डाक्टर ने कहा, 'बन्दोबस्त मेरा सर होगा ! आज मुझे फिर जाना पड़ेगा और क्या !' (श्रीरामकृष्ण का हँसना)
“उन्होंने इतना और कहा, ‘तुम लोग नहीं जानते, मेरे कितने रुपयों पर पानी फिर जाता है । रोज दो-तीन जगह जाना नहीं हो पाता ।’”
(क्रमशः)

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