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*दादू जब मुख मांहि मेलिये, तब सब ही तृप्ता होइ ।*
*मुख बिन मेले आन दिश, तृप्ति न माने कोइ ॥*
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*साभार ~@Subhash Jain*
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ओशो...
मैंने सुना है, पश्चिम के एक विचारक ने एक किताब लिखी। और उसने लिखा, बहुत जल्द वह समय आ जाएगा कि हम प्रेम करने के लिए भी नौकर रख लिया करेंगे।
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जरूर। कौन मुसीबत ले प्रेम करने की खुद। एक नौकर रख लिया करेंगे, तनख्वाह दे दिया करेंगे। वह जाकर जिससे हमें प्रेम हो उससे प्रेमपूर्ण बातें कह दिया करेगा, प्रेम कर लिया करेगा। उससे भी हम बच जाएंगे। हंसी आती है हमें इस बात पर, लेकिन हमने प्रार्थना करने के लिए नौकर रख लिए उस पर हंसी नहीं आती ?
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मंदिर में एक पुजारी रख लिया है, जिसको हम तनख्वाह देते हैं कि तू प्रार्थना करना हमारे लिए। घर पर हम एक पुजारी को बुलाते हैं कि तू प्रार्थना कर प्रभु से हमारे लिए, हम तुझे पैसे देंगे। जब हम प्रार्थना करवा सकते हैं नौकर से, तो क्या कोई आश्चर्य है इस बात का कि यह आदमी कभी प्रेम भी करवा सकता है ?
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प्रेम और प्रार्थना में कोई फर्क है ? कोई भेद है ? अगर हम परमात्मा और अपने बीच नौकर रख सकते हैं, तो क्या कठिनाई है कि हम प्रेयसी और अपने बीच नौकर न रख लें ?
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तो मत हंसिए इस बात पर। अगर हंसते हैं, तो फिर पुजारी को विदा कर दीजिए। इस पर हंसने की जरूरत नहीं है, यह हम करते रहे हैं, यह हम रोज कर रहे हैं। विश्वास ने, अंधे विश्वास ने विचार की सारी क्षमता छीन ली है।
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अंतर की खोज-(विविध)-प्रवचन-07

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