🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*दादू चिन्ता कियां कुछ नहीं,*
*चिंता जीव को खाइ ।*
*होना था सो ह्वै रह्या,*
*जाना है सो जाइ ॥*
===============
*साभार ~ @Subhash Jain*
.
एक बड़ी प्रसिद्ध सूफी कहानी है, एक सम्राट ने अपने सारे बुद्धिमानों को बुलाया। और उनसे कहा कि मैं कुछ ऐसा सूत्र चाहता हूं--छोटा हो। बड़े शास्त्र नहीं चाहिए। मुझे फुर्सत भी नहीं बड़े शास्त्र पढ़ने की--ऐसा सूत्र चाहता हूं, एक वचन में पूरा हो जाए। और हर घड़ी काम आए। दुख हो कि सुख, जीत हो कि हार, जीवन हो कि मृत्यु, सूत्र काम आए। तो तुम एक ऐसा सूत्र खोज लाओ।
.
उन्होंने बड़ी मेहनत की, बड़ा विवाद किया। कुछ निष्कर्ष नहीं हो सका। तो उन्होंने कहा कि हम बड़ी मुश्किल में पड़े हैं। बड़ा विवाद है, संघर्ष है। कोई निष्कर्ष नहीं हो पाता। अच्छा हो...कि हमने सुना है एक सूफी फकीर गांव के बाहर ठहरा है। कहते हैं बड़ा प्रज्ञा को उपलब्ध, संबोधि को उपलब्ध व्यक्ति है। हम उसी के पास चलें।
.
उस सूफी फकीर ने अपनी अंगूठी पहन रखी थी अंगुलि में, वह निकालकर सम्राट को दे दी और कहा कि इसे पहन लो। इस पत्थर के नीचे छोटा-सा कागज रखा है, उसमें सूत्र लिखा हुआ है। वह मेरे गुरु ने मुझे दिया था। मुझे तो जरूरत भी न पड़ी तो मैंने तो अभी तक खोलकर देखा भी नहीं। शर्त उन्होंने एक ही रखी थी कि जब कुछ और उपाय न रह जाए, सब तरफ से निरुपाय हो जाओ, तब इसे खोलकर पढ़ना।
.
ऐसी कोई घड़ी न आयी। उनकी बड़ी कृपा है। इसलिए मैं तो इसे खोलकर पढ़ा नहीं लेकिन जरूर इसमें कुछ राज होगा। आप रख लो। लेकिन शर्त याद रखना--इसका वचन दे दो कि जब कोई और उपाय न रह जाएगा, सब तरफ से निरुपाय, असहाय हो जाओगे, तभी अंतिम घड़ी में इसे खोलना। क्योंकि यह सूत्र बड़ा बहुमूल्य है और साधारणतः खोला गया तो अर्थहीन है।
.
बड़ी प्रखर वेदना की स्थिति में इसे खोलना। यह शब्द वेदना--सुनते हो, बड़ा बहुमूल्य है। यह उसी से बना है, जिससे वेद बना। वेदना के दो अर्थ होते हैं। एक तो अर्थ होता है, दुख। और एक अर्थ होता है ज्ञान। गहरे दुख के क्षण में ही ज्ञान होता है। तो उस फकीर ने कहा कि जब वेदना का बहुत गहरा क्षण हो, तब इसे खोलना। यह वेद का सूत्र है। यह वेद है। इसे हर घड़ी में खोल लोगे तो बेकाम है।
.
क्योंकि तुम तैयार ही न होओगे। तुम्हारा इससे तालमेल न बैठेगा। तुम जब बिलकुल वेदना में जल रहे हो, चिता में बैठे हो और सब तुम्हारे सांसारिक उपाय व्यर्थ हो जाएं--क्योंकि तुम सम्राट हो, तुम्हारे पास बहुत उपाय हैं--तो इसको मत खोलना। जब तुम पाओ कि तुम दीन-दरिद्र, सम्राट नहीं; असहाय--लकड़ी के टुकड़े की तरह सागर में पड़े तरंगों के हाथ में--कहां ले जाएं, पता नहीं; तब इसे खोलना। उस वेदना के क्षण में इसका वेद-सूत्र तुम्हारे काम आ जाएगा।
.
सम्राट ने अंगूठी पहन रखी। वर्षों बीत गए। कई दफे खयाल भी आया--लेकिन शर्त पूरी करनी थी। वचन दिया था तो खोला नहीं। कई दफे जिज्ञासा भी हुई। फिर सोचा कि खराब न हो जाए कहीं। फिर घड़ी भी आ गई। वर्षों बाद सम्राट हार गया। दुश्मन जीत गया, उसके राज्य को हड़प लिया। वह भागा एक घोड़े पर, अपनी जान बचाने को। राज्य तो गया, संगी-साथी भी थोड़ी देर बाद उसे छोड़ दिए। दो-चार सैनिक, उसके रक्षक साथ थे; वे भी धीरे-धीरे हट गए क्योंकि अब कुछ बचा ही न था तो रक्षा करने का भी कोई सवाल न था।
.
दुश्मन पीछा कर रहा है, वह एक पहाड़ी घाटी से भागा जा रहा है अपने घोड़े पर। पीछे घोड़ों की आवाजें आ रहीं हैं, टापें सुनाई पड़ रहीं हैं। प्राण संकट में हैं। और अचानक उसने पाया कि रास्ता समाप्त हो गया। आगे तो भयंकर गङ्ढ है। लौट भी नहीं सकता। पीछे दुश्मन पास आ रहा है। आगे जा भी नहीं सकता।
.
एक क्षण को किंकर्तव्यविमूढ़, हतप्रभ खड़ा रह गया ! क्या करे ? याद आयी अचानक, खोली अंगूठी, पत्थर हटाया, निकाला कागज, उसमें एक छोटा-सा वचन लिखा था: "दिस टू विल पास--यह भी बीत जाएगा।' सूत्र को पढ़ते ही मुस्कुराहट आ गई उसे। एक बात खयाल में आयी, सब तो बीत गया--सम्राट न रहा, साम्राज्य गया। सुख बीत गया। तो जब सुख बीत जाता है तो दुख भी थिर तो नहीं हो सकता। शायद सूत्र ठीक ही कहता है। अब करने को भी कुछ नहीं है।
.
लेकिन सूत्र ने जैसे उसके भीतर कोई सोया तार छेड़ दिया, कोई साज छेड़ दिया। "यह भी बीत जाएगा।' ऐसा बोध आते ही जैसे एक सपना टूट गया। अब वह व्यग्र नहीं, बेचैन नहीं, घबड़ाया हुआ नहीं...कि ठीक है। वह बैठ गया। संयोग की बात ! थोड़ी दूर तक तो, थोड़ी देर तक तो घोड़ों की टापें सुनाई पड़ती रहीं, फिर टापें बंद हो गईं। शायद सैनिक किसी दूसरे रास्ते पर मुड़ गए। घना जंगल है, बीहड़-पहाड़ हैं, पक्का उन्हें पता भी नहीं है, कि सम्राट किस तरफ गया है। धीरे-धीरे घोड़ों की टापें दूर हो गईं।
.
अंगूठी उसने वापिस पहन ली। कुछ दिनों बाद फिर दुबारा उसने अपने मित्रों को इकट्ठा कर लिया। हमला किया, पुनः जीता, फिर अपने सिंहासन पर बैठ गया। जब सिंहासन पर बैठा तो बड़ा आह्लादित हो रहा था, तभी उसे पुनः उस घड़ी की याद आयी। उसने फिर अंगूठी खोली, फिर कागज को पढ़ा, फिर मुस्कुराया। वह सारा आह्लाद, विजय का उल्लास, विजय का दंभ, सब विदा हो गया।
.
उसके वजीरों ने पूछा, "आप बड़े प्रसन्न थे, आप एकदम शांत हो गए! क्या हुआ ?' सम्राट ने कहा, यह सूत्र--"यह भी बीत जाएगा।' अब सभी बीत जाएगा। तो न इस संसार में दुखी होने को कुछ है, न सुखी होने को कुछ है। तो जो चीज भी तुम्हें लगती हो, बीत जाएगी, याद रखना। अगर यह एक सूत्र भी पकड़ में आ जाए तो और क्या चाहिए ? तो तुम्हारी पकड़ ढीली होने लगेगी। तुम धीरे-धीरे उन सब चीजों से अपने को दूर पाने लगोगे, जो चीजें बीत जाएंगी। क्या अकड़ना ! कैसा गर्व ! किस बात के लिए इठलाना ! सब बीत जाएगा। यह जवानी बीत जाएगी।
.
याद बन-बनके कहानी लौटी
सांस होऱ्होके बिरानी लौटी
लौटे सब गम जो दिए दुनिया ने
मगर न जाकर जवानी लौटीयह सब बीत जाएगा। यह जवानी, यह दो दिन की इठलाहट, यह दो दिन के लिए तितलियों जैसे पंख। ये सब बीत जाएंगे। यह दो दिन की चहल-पहल, फिर गहरा सन्नाटा। फिर मरघट की शांति।
ओशो
जिन सूत्र (भाग--2) प्रवचन--19

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें