सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
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*दादू मम सिर मोटे भाग,*
*साधों का दर्शन किया ।*
*कहा करै जम काल,*
*राम रसायन भर पिया ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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मेरे प्रिय,
ओशो के द्वारा बताई गई एक ऐसी दिव्य घटना से अवगत करा रहा हूँ जो आपको आश्चर्य से भर देगी। साथ ही आपकी चेतना का वो द्वार भी खुलेगा जिसकी संभावना है और आप आनंद व अहोभाव से भर जाएंगे। 
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यह घटना अमेरिकी सरकार की कैद के दौरान दिए गए धीमे जहर के घातक असर के कारण दिसम्बर, 1988 में ओशो कुछ सप्ताह तक गंभीर रूप से बीमार रहे और मरणासन्न हो चले थे। स्वस्थ होने पर उव्न्होंने बताया कि इस अवधि के दौरान कुछ समय तक वह गौतम बुद्ध की चेतना के वाहक बन गए थे। 26 दिसम्बर, 1988 को ओशो ने अपने प्रवचनों की श्रृंखला फिर से शुरू की और बताया कि उनके शरीर से जहर का असर अब पूरी तरह से चला गया है। 
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समकालीन जापानी ज़ेन संन्यासिन के. इशिदा ने उनके मैत्रेय बुद्ध की चेतना के वाहक होने की पुष्टि की। उसके बाद ओशो ने भगवान रजनीश के नाम का त्याग करके ‘गौतम बुद्ध’ नाम धारण कर लिया। इस तरह उन्होंने अपने जीवनकाल में चार बार नए नाम धारण किए थे। ओशो उनके द्वारा धारण किया गया आखिरी नाम था। इस दुर्लभ परिघटना की कहानी, ओशो की जुबानी: 
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यह ऐतिहासिक महत्व की अवधि रही।
सात सप्ताह तक मैं दिन-रात जहर से मुकाबला करने में जुटा रहा। एक रात तो मेरे चिकित्सक अमृतो को भी अंदेशा हो गया कि शायद मैं बच नहीं सकूँगा। वह मेरी नाड़ी और हृदय की गति को माप रहे थे। सात बार मेरे हृदय की गति क्षण भर को थम गई।
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सातवीं बार जब मेरे हृदय की धड़कन थमी तो उसके वैज्ञानिक मन ने सोचा, “अब हम ऐसी जंग लड़ रहे हैं जो पहले ही हार चुके हैं।” लेकिन मैंने उससे कहा, “चिंतित मत हो। तुम्हारा कार्डियोग्राम गलत हो सकता है, वह महज एक यांत्रिक उपकरण है। मेरे साक्षीभाव पर भरोसा रखो। मेरे हृदय की धड़कनों की चिंता मत करो।”
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सात सप्ताह तक संघर्ष करने के बाद जब मेरे शरीर का सारा दर्द चला गया तो अमृतो को विश्वास नहीं हुआ। यह एक चमत्कार की तरह ही घटित हो रहा था। सारा दर्द कहां गायब हो गया ?
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आखिरी रात, मध्य रात्रि में मैंने सुना कि कोई दरवाजा खटखटा रहा था। ऐसा विरले ही होता है, कोई मेरे दरवाजे को कभी नहीं खटखटाता। मैंने अपनी आँखें खोलीं। कमरे में बिल्कुल अंधेरा था, लेकिन मैंने अचानक देखा कि बंद दरवाजे से पवित्र प्रकाश का बना एक पुँज अंदर प्रवेश कर रहा था। एक क्षण के लिए वहाँ मौन छा गया, और मुझे एक आवाज सुनाई दी, “क्या मैं अंदर आ सकता हूं?” अतिथि इतना पवित्र, इतना सुगंधयुक्त था कि मैंने उन्हें अपने हृदय के मौन में प्रविष्ट होने दिया।
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पवित्र प्रकाश का बना वह पुँज कोई और नहीं, स्वयं गौतम बुद्ध थे। तुम अब भी मेरी आँखों में वह ज्योति देख सकते हो जिसे मैंने अपने भीतर आत्मसात किया है। एक ऐसी ज्योति जो पचीस शताब्दियों से धरती पर आश्रय की तलाश में भटक रही थी। मैं धन्य हो गया कि गौतम बुद्ध ने मेरे दरवाजे खटखटाए।
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तुम मेरी आँखों में वह ज्योति, वह अग्नि देख सकते हो। तुम्हारा अस्तित्व भी उसी शीतल ज्योति से निर्मित है। तुम्हें इस  अग्नि को धरती पर चारों तरफ ले जाना है, आँखों से आँखों तक, हृदय से हृदय तक, उस  ज्योति को  पहुँचाना है। मैं यहाँ कोई नया धर्म बनाने नहीं आया हूँ। मेरा हर प्रयास सभी धर्मों को नष्ट कर देने की दिशा में है …..
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मैं तुम्हारे भीतर इतनी आग भर देना चाहता हूँ कि उसमें तुम्हारा अहंकार भस्म हो जाए और साथ ही तुम्हारी दासता भी और वह तुम्हें मुक्त कर दे, तुमको स्वयं प्रकाशमान बना दे। तुम्हारी वही आँखें इस संसार की आशा हैं।
इन  कुछ दिन-रातों में मेरा शरीर पवित्रीकरण की प्रक्रिया से गुजरा है। 
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राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और उसके अधिकारियों ने जो जहर मुझे दिलवाया था…..दुनिया भर के विष-विज्ञान के विशेषज्ञों ने कहा कि सभी प्रकार के विषों में यह एक ऐसा विष है जिसका किसी भी जाँच से पता नहीं चल सकता। और अमेरिका में सी.आई.ए. इसी जहर का प्रयोग करता है (अपने सबसे खतरनाक कैदियों के लिए), क्योंकि इसके बारे में पता लगाने का कोई उपाय नहीं है। और यदि आपको पता नहीं लगता तो आप प्रतिविष (एंटीडॉट्स) का प्रयोग भी नहीं कर सकते। मौत लगभग निश्चित ही थी।
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इन लंबे दिन-रातों में मैं इस जहर की चुनौती का सामना करता रहा, केवल साक्षीभाव से। इस जहर के असर से हड्डियों के प्रत्येक जोड़ पर निरंतर पीड़ा हो रही थी, लेकिन एक चमत्कार हुआ। धीरे-धीरे सभी जोड़ों से दर्द गायब हो गया। आखिर में दोनों बाँहों में दर्द बचा रह गया था। आज वहां से भी दर्द दूर हो गया है।
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मुझे महसूस हो रहा है कि यद्यपि मैं यहाँ शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं था, तुम लोगों ने मुझे यहाँ की हवा में महसूस किया होगा। तुमने मुझे पहले से अधिक करीब से महसूस किया होगा। और तुम्हारे गीतों में भी मैं उपस्थित था। स्मरण करो कि तुम्हारे ध्यान में मैं उससे कहीं अधिक शामिल था जितना शारीरिक उपस्थिति के द्वारा हो पाना मेरे लिए संभव है। - ओशो
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ऐसा कभी भी तुम्हारे साथ भी घट सकता है, ये अस्तित्व इतना करुणावान है।
अहोभाव के साथ 🌻🍁🌷🌺👏
ओशो

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