शनिवार, 14 अक्टूबर 2023

= १०२ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*जहाँ सुरति तहँ जीव है, जीवन मरण जिस ठौर ।*
*विष अमृत तहँ राखिये, दादू नाहीं और ॥*
===============
*साभार ~ @Subhash Jain*
.
ऐसी मनुष्य की दशा है वहां झूठ सच है वहां व्यर्थ सार्थक है और जहां कमल खिलने थे वहां कीचड़ और काई के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। ऐसी मनुष्य की दशा है। वहां अधेरे में रहते-रहते हमने अंधेरे को ही उजियाला मान लिया है। आखिर जीने के लिए आदमी को सांत्वना भी तो चाहिए। 
.
अंधेरे को अंधेरा मानो तो बेचैनी होती है। अंधेरे को उजाला मान लो अंधेरा उजाला तो नहीं बनता तुम्हारे मानने से, लेकिन मन को चैन आ जाता है। आदमी ने बड़े झूठ गढ़े हैं। अधिकतर आदमी झूठ के सहारे जीता है। सच कठिन है। सच की खोज कठिन है। सच का रास्ता बहुत कंटकाकीर्ण है। 
.
इसलिए नहीं कि सच कठिन होना चाहिए, बल्कि इसलिए कि हम झूठ के बहुत अभ्यस्त हो गए हैं। जिस आदमी ने जन्मों-जन्मों तक कीचड़ को ही सब कुछ जाना हो, उसके लिए यह बात भी सोचनी असंभव मालूम होती है कि कीचड़ से कमल पैदा हो सकता है और जो रात में ही जीया हो और आंखें अंधेरे की आदी हो गई हों, अगर रोशनी आज आ भी जाए तो आंखें खुल न पाएंगी, तिलमिला जाएंगी। अब तो रोशनी कष्टपूर्ण मालूम पडेगी।
- ओशो -

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें