मंगलवार, 17 अक्टूबर 2023

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*क्यों कर यह जग रच्यो गुसांईं,*
*तेरे कौन विनोद बन्यो मन मांहीं ॥टेक॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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*महावीर वाणी*
*जग-हेतुवा*
इणमन्नं तु अन्नणं, इहमेगेसिमाहिया ।
देव-उत्ते श्रेयं लोए, संभवत व आवरे ॥१३॥
ईसरेण कड़े लोए, पहाणाइ तहाञ्वरे ।
जीवानीवसमाउते सुहदुक्खसमन्निए ॥१४॥
सर्वभुणा निश्चित लोए, इइ वृत्तं महेसिना।
मारेण संयुग्रा माया, तेण लोए साते ॥१५॥
*श्लोक टीका*
*विवाद सूत्र*
*जगत्कर्तृत्ववाद*
जगत् की उत्पत्ति के सम्बन्ध मे कितने ही लोगों का यह भ्रान्तिमय वक्तव्य है -
- "कोई कहते है कि यह लोक देवों ने बनाया है ।"
- "कोई कहते है कि यह लोक ब्रह्मा ने बनाया है ।"
- "कोई कहते है कि यह लोक ईश्वर ने बनाया है ।"
- "कोई कहते है कि जड़ और चैतन्य से युक्त तथा सुख और दुख से समन्वित यह लोक प्रधान(प्रकृति) आदि के द्वारा बना है ।"
- "कोई कहते है कि यह लोक स्वयम्भू ने बनाया है, ऐसा हमारे महर्षि ने कहा है । अनन्तर मार ने माया का विस्तार किया- इस कारण लोक अशाश्वत(नित्य) है ।"
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*उपसंहारो* 
एवमेवाणि जम्पन्ता, वाला पडिवमाणिणो । 
निवयनियं सन्तं श्रान्ता अबुद्धिया ॥१६॥
अपने-आपको पण्डित माननेवाले बुद्धिहीन मूर्ख इस प्रकार की अनेक बाते करते हैं । परन्तु नियति क्या है और अनियति क्या, यह कुछ भी नही जानते, समझते ।

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