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*साचा शब्द कबीर का, मीठा लागै मोहि ।*
*दादू सुनतां परम सुख, केता आनन्द होहि ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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एक परम सदगुरु के साथ अब हम कुछ दिन यात्रा करेंगे कबीर के साथ। बड़ा सीधा-साफ रास्ता है कबीर का। बहुत कम लोगों का रास्ता इतना सीधा-साफ है। टेढ़ी-मेंढ़ी बात कबीर को पसंद नहीं। इसलिए उनके रास्ते का नाम है सहज-योग। इतना सरल है कि भोलाभाला बच्चा भी चल जाए। वस्तुतः इतना सहज है कि भोला भाला बच्चा ही चल सकता है। पंडित न चल पाएगा। तथाकथित ज्ञानी न चल पाएगा। निर्दोष चित्त होगा कोरा कागज होगा तो चल पाएगा।
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यह कबीर के संबंध में पहली बात समझ लेनी जरूरी है। वहां पांडित्य का कोई अर्थ नहीं है। कबीर खुद भी पंडित नहीं हैं। कहा है कबीर ने ‘मसि कागद छूयौ नहीं कलम नहीं गही हाथ।’ कागज-कलम से उनकी कोई पहचान नहीं है। ‘लिखा लिखी की नहीं देखा देखी बात कहा है कबीर ने। देखा है वही कहा है। जो चखा है वही कहा है। उधार नहीं है।
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कबीर के वचन अनूठे हैं जूठे जरा भी नहीं। और कबीर जैसा जगमगाता तारा मुश्किल से मिलता है। संतों में कबीर के मुकाबले कोई और नहीं। सभी संत प्यारे और सुंदर हैं। सभी संत अदभुत हैं मगर कबीर अदभुतों में भी अदभुत हैं बेजोड़ हैं।
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कबीर की सबसे बड़ी अद्वितीयता तो यही है कि जरा भी उधार नहीं है। अपने ही स्वानुभव से कहा है। इसलिए रास्ता सीधा-साफ है सुथरा है। और चूंकि कबीर पंडित नहीं हैं इसलिए सिद्धांतों में उलझने का कोई उपाय भी नहीं था। बड़े-बड़े शब्दों का उपयोग कबीर नहीं करते। छोटे-छोटे शब्द हैं जीवन के सबकी समझ में आ सकें।लेकिन उन छोटे-छोटे शब्दों से ऐसा मंदिर चुना है कबीर ने कि ताजमहल फीका है।
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जो एक बार कबीर के प्रेम में पड़ गया फिर उसे और कोई संत न जंचेगा। और अगर जंचेगा भी तो इसलिए कि कबीर की ही भनक सुनाई पड़ेगी। कबीर को जिसने पहचाना फिर वह शक्ल भूलेगी नहीं।
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ओशो; कहै कबीर मैं पूरा पाया

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