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*जीव जन्म जब पाया, मस्तक लेख लिखाया रे ॥*
*घटै बधै कुछ नांही, कर्म लिख्या उस माहीं रे ॥*
*विधाता विधि कीन्हा, सिरज सबन को दीन्हा रे ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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पाइथागोरस जब भारत आया तब भारत बुद्ध और महावीर के विचारों से तीव्रता से आप्लावित था । पाइथागोरस हिंदुस्तान से वापस लौट कर जो बातें कहा है उसमें उसने महावीर और विशेषकर जैनों के संबंध में बहुत सी बातें महत्वपूर्ण कही हैं । उसने जैनों को जैनोसोफिस्ट कह कर पुकारा है । सोफिस्ट का मतलब होता है दार्शनिक और जैनों का मतलब तो जैन ! तो जैन दार्शनिक को पाइथागोरस ने जैनोसोफिस्ट कहा है । नग्न रहते हैं, यह सारी बात भी उसने की है ।
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पाइथागोरस मानता था कि प्रत्येक नक्षत्र या प्रत्येक ग्रह या उपग्रह जब यात्रा करता है अंतरिक्ष में, तो उसकी यात्रा के कारण एक विशेष ध्वनि पैदा होती है । प्रत्येक नक्षत्र की गति एक विशेष ध्वनि पैदा करती है । और प्रत्येक नक्षत्र की अपनी व्यक्तिगत निजी ध्वनि है । और इन सारे नक्षत्रों की ध्वनियों का एक तालमेल है, जिसे वह विश्व की संगीतबद्धता, हार्मनी कहता था ।
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जब कोई मनुष्य जन्म लेता है तब उस जन्म के क्षण में इन नक्षत्रों के बीच जो संगीत की व्यवस्था होती है वह उस मनुष्य के प्राथमिक, सरलतम, संवेदनशील चित्त पर अंकित हो जाती है । वही उसे जीवन भर स्वस्थ और अस्वस्थ करती है । जब भी वह अपनी उस मौलिक जन्म के साथ पाई गई संगीत-व्यवस्था के साथ तालमेल बना लेता है तो स्वस्थ हो जाता है । और जब उसका तालमेल छूट जाता है तो अस्वस्थ हो जाता है ।
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पैरासेलीसस ने इस संबंध में बड़ा महत्वपूर्ण काम किया । वह किसी मरीज को दवा नहीं देता था जब तक उसकी जन्म-कुंडली न देख ले । और बड़ी हैरानी की बात है कि पैरासेलीसस ने जन्म-कुंडलियां देख कर ऐसे मरीजों को ठीक किया जिनको कि चिकित्सक कठिनाई में पड़ गए थे और ठीक नहीं कर पाते थे ।
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उसका कहना था, जब तक मैं यह न जान लूं कि यह व्यक्ति किन नक्षत्रों की स्थिति में पैदा हुआ है तब तक इसके अंतर्संगीत के सूत्र को भी पकड़ना संभव नहीं है । और जब तक मैं यह न जान लूं कि इसके अंतर्संगीत की व्यवस्था क्या है तो इसे कैसे हम स्वस्थ करें ? क्योंकि स्वास्थ्य का क्या अर्थ है, इसे थोड़ा समझ लें !
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अगर साधारणतः हम चिकित्सक से पूछें कि स्वास्थ्य का क्या अर्थ है तो वह इतना ही कहेगा बीमारी का न होना । पर उसकी परिभाषा निगेटिव है, नकारात्मक है । और यह दुखद बात है कि स्वास्थ्य की परिभाषा हमें बीमारी से करनी पड़े । स्वास्थ्य तो पाजिटिव चीज है, बीमारी निगेटिव है, नकारात्मक है ।
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स्वास्थ्य तो स्वभाव है, बीमारी तो आक्रमण है । तो स्वास्थ्य की परिभाषा हमें बीमारी से करनी पड़े, यह बात अजीब है । घर में रहने वाले की परिभाषा मेहमान से करनी पड़े, तो बात अजीब है । स्वास्थ्य तो हमारे साथ है, बीमारी कभी होती है । स्वास्थ्य तो हम लेकर पैदा होते हैं, बीमारी उस पर आती है । पर हम स्वास्थ्य की परिभाषा अगर चिकित्सकों से पूछें तो वे यही कह पाते हैं कि बीमारी नहीं है तो स्वस्थ हैं ।
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पैरासेलीसस कहता था, यह व्याख्या गलत है । स्वास्थ्य की पाजिटिव डेफिनिशन होनी चाहिए । पर उस पाजिटिव डेफिनिशन को, उस विधायक व्याख्या को कहां से पकड़ेंगे ? तो पैरासेलीसस कहता था, जब तक हम तुम्हारे अंतर्निहित संगीत को न जान लें--वही तुम्हारा स्वास्थ्य है--तब तक हम ज्यादा से ज्यादा तुम्हारी बीमारियों से तुम्हारा छुटकारा करवा सकते हैं ।
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लेकिन हम एक बीमारी से तुम्हें छुड़ाएंगे और तुम दूसरी बीमारी को तत्काल पकड़ लोगे । क्योंकि तुम्हारे भीतरी संगीत के संबंध में कुछ भी नहीं किया जा सका । असली बात तो वही थी कि तुम्हारा भीतरी संगीत स्थापित हो जाए ।
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इस संबंध में--पैरासेलीसस को हुए तो कोई पांच सौ वर्ष होते हैं, उसकी बात भी खो गई थी--लेकिन अब पिछले बीस वर्षों में, उन्नीस सौ पचास के बाद दुनिया में ज्योतिष का पुनर्आविर्भाव हुआ है । और आपको जान कर हैरानी होगी कि कुछ नये विज्ञान पैदा हुए हैं जिनके संबंध में कुछ आपसे कह दूं, तो फिर पुराने विज्ञान को समझना आसान हो जाएगा । उन्नीस सौ पचास में एक नई साइंस का जन्म हुआ ।
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उस साइंस का नाम है: कॉस्मिक केमिस्ट्री, ब्रह्म-रसायन । उसको जन्म देने वाला आदमी है: जियॉजारजी जिऑरडी । यह आदमी इस सदी के कीमती से कीमती थोड़े से आदमियों में एक है । इस आदमी ने वैज्ञानिक आधारों पर प्रयोगशालाओं में अनंत प्रयोगों को करके यह सिद्ध किया है कि जगत, पूरा जगत, एक आर्गेनिक यूनिटी है । पूरा जगत एक शरीर है ।
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और अगर मेरी अंगुली बीमार पड़ जाती है तो मेरा पूरा शरीर प्रभावित होता है । शरीर का अर्थ होता है कि टुकड़े अलग-अलग नहीं हैं, संयुक्त हैं, जीवंत रूप से इकट्ठे हैं । अगर मेरी आंख में तकलीफ होती है तो मेरे पैर का अंगूठा भी अनुभव करता है । और अगर मेरे पैर को चोट लगती है तो मेरे हृदय को भी खबर मिलती है ।
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और अगर मेरा मस्तिष्क रुग्ण हो जाता है तो मेरा शरीर पूरा का पूरा बेचैन हो जाएगा । और अगर मेरा पूरा शरीर नष्ट कर दिया जाए तो मेरे मस्तिष्क को खड़े होने के लिए जगह मिलनी मुश्किल हो जाएगी । मेरा शरीर एक आर्गेनिक यूनिटी है--एक एकता है जीवंत । उसमें कोई भी एक चीज को छुओ तो सब प्रवाहित होता है, सब प्रभावित हो जाता है ।
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कॉस्मिक केमिस्ट्री कहती है कि पूरा ब्रह्मांड एक शरीर है । उसमें कोई भी चीज अलग-अलग नहीं है, सब संयुक्त है । इसलिए कोई तारा कितनी ही दूर क्यों न हो, वह भी जब बदलता है तो हमारे हृदय की गति को बदल जाता है । और सूरज चाहे कितने ही फासले पर क्यों न हो, हर ग्यारह वर्षों में जब वह ज्यादा उत्तप्त होता है तो हमारे खून की धाराएं बदल जाती हैं ।
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पिछली बार जब सूरज पर बहुत ज्यादा गतिविधि चल रही थी और अग्नि के विस्फोट चल रहे थे, तो एक जापानी चिकित्सक तोमातो बहुत हैरान हुआ । वह चिकित्सक स्त्रियों के खून पर निरंतर काम कर रहा था बीस वर्षों से । स्त्रियों के खून की एक विशेषता है जो पुरुषों के खून की नहीं है । उनके मासिक धर्म के समय उनका खून पतला हो जाता है । और पुरुष का खून पूरे समय एक सा रहता है । स्त्रियों का खून मासिक धर्म के समय पतला हो जाता है, या गर्भ जब उनके पेट में होता है तब उनका खून पतला हो जाता है । पुरुष और स्त्री के खून में एक बुनियादी फर्क तोमातो अनुभव कर रहा था ।
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लेकिन जब सूरज पर बहुत जोर से तूफान चल रहे थे आणविक शक्तियों के--हर ग्यारह वर्ष में चलते हैं--तो वह चकित हुआ कि पुरुषों का खून भी पतला हो जाता है । जब सूरज पर आणविक तूफान चलता है तब पुरुष का खून भी पतला हो जाता है । यह बड़ी नई घटना थी, यह इसके पहले कभी रिकॉर्ड नहीं की गई थी कि पुरुष के खून पर सूरज पर चलने वाले तूफान का कोई प्रभाव पड़ेगा । और अगर खून पर प्रभाव पड़ सकता है तो फिर किसी भी चीज पर प्रभाव पड़ सकता है ।
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एक दूसरा अमरीकन विचारक है, फ्रेंक ब्राउन । वह अंतरिक्ष यात्रियों के लिए सुविधाएं जुटाने का काम करता रहा है । उसकी आधी जिंदगी, अंतरिक्ष में जो मनुष्य यात्रा करने जाएंगे उनको तकलीफ न हो, इसके लिए काम करने की रही है । सबसे बड़ी विचारणीय बात यही थी कि पृथ्वी को छोड़ते ही अंतरिक्ष में न मालूम कितने प्रभाव होंगे, न मालूम कितनी धाराएं होंगी रेडिएशन की, किरणों की--वे आदमी पर क्या प्रभाव करेंगी ?
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लेकिन दो हजार साल से ऐसा समझा जाता रहा है अरस्तू के बाद, पश्चिम में, कि अंतरिक्ष शून्य है, वहां कुछ है ही नहीं । दो सौ मील के बाद पृथ्वी पर हवाएं समाप्त हो जाती हैं, और फिर अंतरिक्ष शून्य है । लेकिन अंतरिक्ष यात्रियों की खोज ने सिद्ध किया कि वह बात गलत है । अंतरिक्ष शून्य नहीं है, बहुत भरा हुआ है । और न तो शून्य है, न मृत है; बहुत जीवंत है ।
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सच तो यह है कि पृथ्वी की दो सौ मील की हवाओं की पर्तें सारे प्रभावों को हम तक आने से रोकती हैं । अंतरिक्ष में तो अदभुत प्रवाहों की धाराएं बहती रहती हैं । उनको आदमी सह पाएगा या नहीं ?
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तो आप जान कर हैरान होंगे और हंसेंगे भी कि आदमी को भेजने के पहले ब्राउन ने आलू भेजे अंतरिक्ष में । क्योंकि ब्राउन का कहना है कि आलू और आदमी में बहुत भीतरी फर्क नहीं है । अगर आलू सड़ जाएगा तो आदमी नहीं बच सकेगा; और अगर आलू बच सकता है तो ही आदमी बच सकेगा । आलू बहुत मजबूत प्राणी है । और आदमी तो बहुत संवेदनशील है । अगर आलू भी नहीं बच सकता अंतरिक्ष में और सड़ जाएगा तो आदमी के बचने का कोई उपाय नहीं है । अगर आलू लौट आता है जीवंत, मरता नहीं है, और उसे जमीन में बोने पर अंकुर निकल आता है, तो फिर आदमी को भेजा जा सकता है । तब भी डर है कि आदमी सह पाएगा या नहीं ।
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इससे एक और हैरानी की बात ब्राउन ने सिद्ध की कि आलू जमीन के भीतर पड़ा हुआ, या कोई भी बीज जमीन के भीतर पड़ा हुआ भी बढ़ता है सूरज के ही संबंध में! सूरज ही उसे जगाता, उठाता है । उसके अंकुर को पुकारता और ऊपर उठाता है ।
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ब्राउन एक दूसरे शास्त्र का अन्वेषक है । और उस शास्त्र को अभी ठीक-ठीक नाम मिलना शुरू हो रहा है । लेकिन अभी उसे कहते हैं: प्लेनेटरी हेरिडिटी, उपग्रही वंशानुक्रम । अंग्रेजी में शब्द है, ‘होरोस्कोप ।’ वह यूनानी होरोस्कोपस का रूप है । होरोस्कोपस, यूनानी शब्द का अर्थ होता है: मैं देखता हूं जन्मते हुए ग्रह को । शब्द का अर्थ होता है ।
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असल में जब एक बच्चा पैदा होता है तब उसी समय पृथ्वी के चारों ओर क्षितिज पर अनेक नक्षत्र जन्म लेते हैं, उठते हैं । जैसे सूरज उठता है सुबह । जैसे सुबह सूरज उगता है, सांझ डूबता है, ऐसे ही चौबीस घंटे अंतरिक्ष में नक्षत्र उगते हैं और डूबते हैं । जब एक बच्चा पैदा हो रहा है--समझें सुबह छह बजे बच्चा पैदा हो रहा है--वही वक्त सूरज भी पैदा हो रहा है । उसी वक्त और कुछ नक्षत्र पैदा हो रहे हैं, कुछ नक्षत्र डूब रहे हैं । कुछ नक्षत्र ऊपर हैं, कुछ नक्षत्र उतार पर चले गए, कुछ नक्षत्र चढ़ाव पर हैं । यह बच्चा जब पैदा हो रहा है तब अंतरिक्ष की, अंतरिक्ष में नक्षत्रों की एक स्थिति है ।

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