गुरुवार, 19 अक्टूबर 2023

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*ताला बेली प्यास बिन, क्यों रस पीया जाइ ।*
*विरहा दर्शन दर्द सौं, हमको देहु खुदाइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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मैंने सुना है कि लंका में एक बौद्ध भिक्षु हुआ। उसके बड़े भक्त थे, हजारों भक्त थे। जब वह मरने को हुआ,आखिरी दिन उसने खबर भेज दी अपने सारे भक्तों को कि तुम आ जाओ, अब मैं जाने को हूं। काफी उम्र, नब्बे वर्ष का हो गया था। कोई बीस हजार उसके भक्त इकट्ठे हुए। 
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उसने खड़े होकर पूछा कि देखो, अब मैं जाने को हूं अब दुबारा मेरा—तुम्हारा मिलना न होगा, इसलिए अगर कोई मेरे साथ निर्वाण में जाना चाहता हो तो खड़ा हो जाए। लोग एक—दूसरे की तरफ देखने लगे। जो जिसको निर्वाण में भेजना चाहता था उसकी तरफ देखने लगा। लोग इशारा करने लगे कि चले जाओ। 
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जो जिसको हटाना चाहता था, उससे कहने लगा : अब क्या बैठे देख रहे हो ! भई हमें तो अभी दूसरी झंझटें हैं, अभी और काम हैं; मगर तुम क्या कर रहे हो ! तुम चले जाओ !' कोई उठा नहीं। सिर्फ एक आदमी ने हाथ उठाया। वह भी उठा नहीं, हाथ उठाया। तो उस बौद्ध भिक्षु ने पूछा कि मैंने कहा, उठ कर खड़े हो जाएं, हाथ उठाने को नहीं कहा।
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उसने कहा : 'इसी डर से तो मैं सिर्फ हाथ उठा रहा हूं। मैं सिर्फ यह पूछना चाहता हूं कि रास्ता क्या है स्वर्ग जाने का, मोक्ष जाने का या निर्वाण जाने का ? रास्ता बता दें आप। क्योंकि अभी इसी वक्त जाने की मेरी तैयारी नहीं है। मगर रास्ता पूछ लेता हूं क्योंकि दुबारा आप मिलें न मिलें। रास्ता काम आएगा; जब जाना चाहूंगा, रास्ते का उपयोग कर लूंगा।’
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उस बौद्ध भिक्षु ने कहा कि रास्ता तो मैं आज कोई पचास साल से बता रहा हूं कोई चलता नहीं। इसलिए मैंने सोचा कि अब जाते वक्त अगर कोई जाने को राजी हो तो लेता जाऊं। अब भी कोई राजी नहीं है।
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तुम कहते हो : परमात्मा से मिलना है, प्यास है ! नहीं, अपनी प्यास को फिर जांचना। प्यास नहीं है,अन्यथा तुम मिल गए होते। परमात्मा और तुम्हारे बीच प्यास की कमी ही तो बाधा है। 
*जलती प्यास*
*अष्ट्रावक्र महागीता-भाग-5प्र-4*
*ओशो ~ संकलन-रामजी*

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